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सूरज प्रकाश : ओमा शर्मा की कहानियाँ

Dec 05, 2016 ~ Leave a Comment ~ Written by Oma Sharma

ओमा शर्मा के पहले कहानी संग्रह ‘भविष्यदृष्टा’ पर लिखते हुए कई बाते याद आ रही हैं। तब में अहमदाबाद में था और स्थानीय आकाशवाणी केन्द्र के निदेशक श्री मदन मोहन मनुज शहर के सभी रचनाकारों को अपनी संस्था ‘नव परिमल’ के जरिये जोड़े रहते थे और गाहे बगाहे गोष्ठियों में एक दूसरे की रचनाओं का आनंद लेने के मौके हमें दिलाते रहते थे। उन दिनों अहमदाबाद में एख साथ कई रचनाकार सक्रिय  थे । वरिष्ठ कथाकार गोविन्द मिश्र, शैलेश पंडित, श्री प्रकाश मिश्र, हरियश राय वगैरह भी उन दिनों वहीं थे। ऐसी ही एक गोष्ठी थी उस शाम। तभी गोविंद जी का संदेश मिला कि उनके विभाग में एक नये अधिकारी आये हैं ओपी शर्मा। कहानियां लिखते हैं और हो सके तो गोष्ठी में उनका कहानी पाठ करा दिया जाये। उस गोष्ठी में ही हमारा परिचय हुआ था। मुझे यह तो याद नहीं कि उस शाम उन्होंने कौन सी कहानी सुनायी थी और क्या वह कहानी इस संग्रह में है अथवा नहीं लेकिन वह कहानी सभी ने पसंद की थी खास कर इसलिए भी कि वह एक नये रचनाकार की पहली-दूसरी कहानी थी और सुनायी जाने के लिहाज से तो पहली ही।

उसके बाद हम अक्सर मिले थे और साहित्य के प्रति, खासकर कहानी के प्रति उनकी उत्सुकता बेहद आश्वस्त करती थी। वे शहर में भी नये थे और कहानी के मैदान में भी अपनी इक्का-दुक्का रचना के साथ आये थे। वे नियमित रूप से गोष्ठियों में आने लगे थे और सार्थक रूप से बहसों में शामिल होने लगे थे। बेशक उन्होंने लिखा कम था  लेकिन वे भयंकर पढ़ाकू थे और नया पुराना जो भी पढ़ा होता उस पर बात करन के लिए हमेशा तैयार होते।

हम दोनों ने लम्बी साहित्यिक बैठकें कीं, खूब लम्बी लम्बी यात्राएं  कीं और यारबाशी की। हम दोनों में बेशक उम्र का ग्यारह बरस का फासला है लेकिन सोच, चिंतन और आपसी समझ बूझ के मामले में हमारी वेव लेंथ एक ही है।

तब से ओमा ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा है। सात आठ बरसों में उन्होंने एक भूत की तरह डट कर काम किया है और खूब काम किया है। जनसत्ता में दो बरस तक एक चर्चित कॉलम, बेहतरीन अनुवाद, बरसों बरस तक चर्चा में रहने वाला राजेन्द्र यादव जी का साक्षात्कार और अब स्टीफन स्वाइग  की आत्मकथा का अनुवाद जिस पर आज कल वे लगातार काम कर रहे हैं।

मुझे खुशी है कि मैं उनकी इस अल्प लेकिन ठोस साहित्यिक यात्रा का एक दम करीबी गवाह रहा हूं और अहमदाबाद रहने के दौरान भी और वहां से आने के बाद भी उनकी रचनाओं के पहले नहीं तो शुरुआती पाठकों में से जरूर ही रहा हूं। इस बीच उन्होंने अपने अनुभव संसार को बहुत फैलाया है और भाषा तथा कथ्य पर खूब काम किया है और हर बार नये नये धरातल की कहानी लेकर हमारे सामने आये हैं। उनकी जितनी भी कहानियां छपी हैं वे सब की सब चर्चित ही हैं और उन्होंने अपनी छाप छोड़ी हैं।

उनका पहली कहानी संग्रह मेरे सामने है और इसमें कुल मिलाकर  सात कहानियां , वजूद को ले कर तीन कहानियां और बच्ची के जन्म को लेकर सर्वथा नये सवाल उठाती चार छोटी कहानियां हैं।

पहली कहानी ‘शुभारंभ’ उनकी साहित्यिक यात्रा का भी शुभारंभ है। एक अफसर है जिसके सामने पहल बार रिश्वत परोसी जा रही है। वह गहर पसोपेश में है कि इसे ले या न ले। एक तरफ नैतिकता का तकाजा और दूसरी तरफ इतनी बड़ी रकम बिना किसी मेहनत के मिलने का लालच। लेने और न लेने के बाच की व्यथा, कशमकश और दोनों  के पक्ष में तर्क देते हुए ओमा ने बेहद धैर्य से और प्रमाणिकता से बयान किया है कि किस तरह से वह एक बार रिश्वत लेने को जस्टीफाई करता है और दूसरी बार न लेने को, लेकिन आस पास का माहौल, अपनी तात्कालिक जरूरतों और अपने मन की कमजोरियों के आगे वह सरंडर कर देता है और रिश्वत के  पैसे पलक झपकते ही उसके ब्रीफकेस में समा जाते हैं।

बेशक यह एक कमजोर आदमी के गलत शुरुआत के पक्ष में सरंडर कर देने की कहानी है और कोई आदर्श हमारे सामने खड़ा नहीं करती लेकिन यह तो बखूबी बताती ही है कि आदमी कमजोर क्यों पड़ता है और कैसे पड़ता है। नायक भी कहां बेईमान होना चाहता है बस, वह अपनी कमजोरी को जस्टीफाई ही तो करता है। और यहीं ओमा ने सच को सच की तरह अपनी पहली ही कहानी में बयान करने की कोशिश में सफलता पायी है।

‘जनम’ किस्सागोई की तर्ज पर लिखी गयी एक बेहद खूबसूरत और मार्मिक कहानी है। हमारे जीवन में कथा नायक जैसे सैकड़ों चरित्र बिखरे पड़े रहते हैं बस, जरूरत उन्हें पहचानने और सामने लाने की होती है। बहुत बड़ी बड़ी बातें करके सामने वाले पर ऐसा इम्प्रेशन जमाना कि सामने वाला मुंह बाए देखता ही रह जाये कि वाह क्या तो आदमी है और क्या तो इसके आदर्श। लेकिन जरा सा कुरेदा नहीं आपने कि सारी पोल खुल जाती है और सामने एक बेहद लिजलिजा सा, बोदा सा और कमजोर आदमी टुच्चे स्वार्थों के लिए गिड़गिड़ाता नजर आता है। इस कहानी के तथाकथित डॉक्टर भी एक ऐसे ही चरित्र हैं जो अपनी बहादुरी के जीवंत किस्से सुना कर ट्रेन सहयात्रियों का मन मोह लेते हैं लेकिन अंत तक आते आते जब असलियत सामने आती है तो उन पर तरस भी नहीं आता, एक तरह की वितृष्णा सी होने लगती है। सच तो यही है कि हमारे पास इस तरह का खोल पहने चरित्रों की कोई कमी नहीं।

‘भविष्यदृष्टा’ कहानी हमें एक और ऐसे ही शख्स से मिलवाती है जो बहुत कुछ करना चाहता था लेकिन आर्थिक दबावों ने उसे कहीं का नहीं रखा और उसी के हिस्से में अगर भविष्यदृष्टा बनना लिखा था तो भी न तो अपने डरावने अतीत से पीछा छुड़ा पाया, न अपने वर्तमान को संवार पाया और न ही अपने भविष्य को ही कोई शेप दे पाया। उसके हिस्से में जो भी आया, वह बेहद डरावना और विचलित करने वाला था। लेकिन उसके पास तरक थे उस को भी जस्टीफाई करने के। परिस्थितियां आदमी को क्या से क्या बना डालती हैं, इस कहानी में ओमा ने बेहद खूबसूरती से सामने रखा है। बेशक कहानी दिल्ली स्कूल ऑफ इकानामिक्स के चुहल भरे और खिलंदड़े माहौल से शुरू होती है और लगातार चुहलबाजियों से भरी बातों के साथ आगे बढ़ती है लेकिन अंत तक आते आते कहानी में ऐसे मोड़ आते हैं कि बस, मुंह से वाह ही निकलती है। ओमा ने इस कहानी पर खासी मेहनत की है और वे इस में पूरी तरह सफल भी हुए हैं।

हमारे भारतीय समाज में आज भी बच्ची के जन्म को लेकर अपने आपको पढ़ा लिखा और बुद्धि सम्पन्न वर्ग किस तरह की दकियानूसी की बातें करता है इसे ओमा ने चार छोटी कहानियों के जरिये बयान किया है। कहानियां बेशक छोटी हैं लेकिन इनसे पता चलता है कि जब ओमा को सचमुच इस तरह की बातें अपनी पहली बच्ची के जन्म पर अपने यार दोस्तों से सुननी पड़ी होंगी तो वे कितने विचलित हुए होंगे।

इसी तरह ‘वजूद’  के अंतर्गत ओमा ने रोजाना की बातचीत में उभरने वाले छोटे-छोटे सवालों को कथा रूप देते हुए सामने रखा है। बेशक ये सवाल इतने मामूली लगते हैं कि सरसरी तौर पर इन पर निगाह भी नहीं जाती लकिन गौर से देखें तो हमारा सारा जीवन ही इन्हीं सवालों के इर्द गिर्द घूमता रहता है और हमारे पास इनके जवाब नहीं होते।

‘मर्ज’ कहानी इस संग्रह की इकलौती कहानी है जो मुस्लिम परिवेश को लेकर लिखी गयी है और स्कूल जाने वाले बच्चे के माध्यम से एक ऐसे परिवार की भीतरी परतें खोलने की कोशिश करती है जिनके बारे में अमूमन हमें पता भी नहीं चल पाता कि उनकी तकलीफें, उनके सुख दुख और जीवन शैली हमारी ही तरह है या किस मायने में अलग हैं। हम हिन्दी के रचनाकार आम तौर पर मुस्लिम परिवेश की कहानियां अलग अलग कारणों से लिखना टालते हैं। शायद उसके खास कारणों में से एक तो यही होता है कि हमें उनके जीवन में इतने गहरे पैठने की अनुमति ही कभी नही मिल पाती और दूसरे, इस सच्चाई से इनकार कोई भी नहीं करेगा कि किसी भी मुस्लिम परिवार को उनके धर्म से अलग करके उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। और धर्म से जुड़े किसी भी विवाद से बचने के लिए हम यही बेहतर समझते हैं कि ऐसे विषयों से बचा ही जाये। यही कारण है कि गैर मुस्लिम हिन्दी लेखकों द्वारा मुस्लिम परिवेश को लेकर बहुत कम लिखा  गया है। ओमा ने इस दिशा  में मेहनत की है और एक अच्छी कहानी लिखी है।

‘काई’ कहानी संग्रह की अच्छी कहानियों में से एक है। कथा नायक एक संस्थान में बड़ा अधिकारी बनने के बाद अपने पुराने स्कूल में सहज जिज्ञासावश जाता है कि वह अपने पुराने माहौल को एक बार फिर जी सके। शुरू में उसे ऐसा लगता भी है कि वह अपने पुराने अध्यापकों से मिल कर अपने पुराने दिनों की झलक पाने में सफल हुआ है लेकिन असलियत जल्दी ही सामने आ जाती है जब उसका अधिकारी होना ही इन संबंधों को फिर से जी सकने में आड़े आने लगता है। उसे लगने लगत है कि उसके पैर किसी लिजलिजी शै पर पड़ गये हैं। मजबूरन वह सब कुछ जस का तस छोड़ कर वहां से भाग आता है।

‘झोंका’ थोड़ी अलग हट कर कहानी है। बेशक ओमा इसे प्रेम कहानी कह सकते हैं और इसे प्रेम कहानी के रूप में इसका विस्तार भी कर सकते थे लेकिन इस कहानी में प्रेम कहानी की सारी संभावनाओं के बावजूद वे इस दिशा में कोई कोशिश नहीं करते और इसके एक हलकी फुलकी अधूरी सी कहानी बना कर ही छोड़ देते हैं। प्रांजल गर्ग सुबह क्लब में एक्सरसाइज के लिए जाते हैं और वहीं उनकी मुलाकात का टूटा-फूटा सिलसिला लावण्या के साथ शुरू होता है। वे उसे ले कर कुछ खुशफहमियां भी पालते हैं, कुछ गुदगुदाने वाली कल्पनाएं भी करते हैं, लेकिन निरंतरता के अभाव में मामला आगे नहीं बढ़ता और तू अपनी राह और मैं अपनी राह की तर्ज पर कहानी पूरी हो जाती है।

‘कंडोलैंस विजिट’ एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। कथा नायक की मां गुजर गयी है। वह अपने अधिकारियों के बीच, अपने सहकर्मियों के बीच और अपने जान पहचान क लोगों के बीच अपना दुख शेयर करना चाहता है। वह विस्तार से अपनी मां की बात करना चाहता है लेकिन किसे फुर्सत उसके दुख के सागर में गोते लगाने की। व्यक्तिगत दुख अपनी जगह पर है लेकिन सांसारिक पचड़े अपनी जगह। बेशक कही तो कंडोलैंस विजिट ही जायेगी लेकिन वहां न कोई बात होती है और कौन कौन से काम निपटाये जात हैं इसे बखूबी ओमा ने बताया है। कहानी पढ़ते समय हमें बरबस चेखव की विश्व प्रसिद्ध कहानी याद आती है जिसमें तांगे वाले का लड़का गुजर गया है और उसके दुख में भागीदारी करने के लिए कोई भी नहीं है और वह मजबूरन अपने घोड़े के साथ अपना दुख बांटता है।

ओमा की कहानियां हमें आश्वस्त करत हैं कि इस कथाकार में गजब की संभावनाएं हैं और यह लेखक बहुत आगे तक जायेगा। इसके पास गहरी दृष्टि, समझ बूझ और व्यापक अनुभव संसार है। वह निर्मम भी है और कोमल दिल भी। वह सच को सच की तरह बयान करना जानता है। उसकी कहानियां अभी अपने आस पास ही घूमती हैं लेकिन सिर्फ नौ कहानियों के आधार पर ही कोई फतवा नहीं दिया जाना चाहिए कि आगे की कहानियों में भी वे रहेंगे। हर लेखक की शुरूआती कहानियों के पात्र वे खुद ही होते हैं और महत्त्वपूर्ण ये है कि अपने आप को भी नायक बना कर वह कितनी बड़ी बात हमारे सामने रख रहा है। कई जगह वे भाषा को ले कर भी नये प्रयोग करते हैं। करने भी चाहिए। इसमें निर्णायक स्वयं लेखक ही तो है जो अपने अनुभव से ही सीखता है। हां एक बात जरूर खटकती है कि औरत या लड़की ओमा के रचना संसार में कहीं नहीं है और है भी तो परदे के पीछे। किसी का भी रचना संसार सिर्फ आदमियों से ही तो पूरा नहीं होता ओमा भाई।

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Oma sharma, born 1963, is a noted Hindi writer. He has published eight books that include three collections of short stories, namely ‘ Bhavishyadrista’(भविष्यदृष्टा ), ‘Karobaar’(कारोबार) and Dushman Memna(दुश्मन मेमना). Besides, he is widely known in India for re-igniting the interest of all and sundry in the works of noted Austrian legend Stefan Zweig. He has translated the autobiography of Stefan Zweig `The world of yesterday` in Hindi titled ‘Vo Gujra Zamaana’(वो गुजरा जमाना ) as also selected stories of the master in his स्टीफन स्वाइग की कालजयी कहानियाँ(Classic stories of Stefan Zweig) . Adab Se Muthbhed, (अदब से मुठभेड़) his book by way of literary encounters with Legends like Rajendra yadav, Mannoo Bhandari, Priyamvad, Shiv murti and M F Husain has been hugely appreciated for its critical probing.

He has published his travel diaries titled ‘Antaryatrayen :Via Vienna’( अन्तरयात्राएं: वाया वियना ) which records a long, never before attempted kind of essay about Stefan Zweig, Vienna and the cultural aspect of Austria. He is recipient of the prestigious Vijay Verma Katha Sammaan (2006), Spandan Award(2012) and Ramakant Smriti Award(2012) for his short stories.

संपर्क: A-1205, Hubtown Sunstone, Opp MIG cricket club, Bandra east. Mumbai 400051
ईमेल: omasharma40[at]gmail[dot]com

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अन्तरयात्राएं वाया वियना 20160516_145032-1 अदब से मुठभेड़

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