किसी लेखक का पहला संग्रह उस शिशु की तरह होता है जिसे देखकर उसके युवा रुप गुण व प्रवृत्तियों की ठीक भविष्यवाणी करना कठिन होता है फिर भी ध्यान से देखने पर मुख्य-गुण सूत्रों की झलक देकी जा सकती है।
ओमा शर्मा की कहानियों का पहला संग्रह ‘भविष्यदृष्टा’ मेरे हाथ में है। पूरा संग्रह पढ़ने के बाद सारे चरित्रों को मानस पटल पर प्रतिबिम्बित कर रहा हूं। ‘शुभारंभ’ का अधिकारी, ‘जनम’ का बातूनी डॉक्टर, ‘भविष्यदृष्टा’ का सतपथी, ‘मर्ज’ के मामू जान, ‘झोंका’ का मैं और ‘कंडोलेंस विजिट’ के अधिकारीगण। दो वर्गीकरण स्पष्ट हैं। एक डॉक्टर, सतपथी और मामू जान जैसे चरित्र जो कभी हार नहीं मानते। जिनके अन्दर का दर्द और असहायता कभी जुबान पर नहीं आती-कम से कम रिरियाहट के रूप में तो नहीं ही। वे अट्टहासों और तर्कों से स्वयं को परिस्थितियों पर काबिज दिखाते हैं। खासकर मामू जान और सतपथी। बहुत जीवंत और जुझारू-चरित्रों की रचना की है ओमा ने। मामू जान जब जान लेते हैं कि उनकी हैसियत महंगा ईलाज कराने की नहीं है तो यह कहकर खुद को और अन्य लोगों को तसल्ली देते है कि ‘सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में है। एक एक सांस की गिनती है। न एक कम न, एक ज्यादा’। इसी तरह ‘भविष्यदृष्टा’ के सतपथी की जिजीविषा देखकर मनुष्य की संघर्षशील परम्परा पर गर्व और भरोसा होता है। नियति कितनी बार उसके धैर्य का इम्तहान लेती है। उसके पटकनी देती है और वह हर बार धूल झाड़कर खड़ा हो जाता है। ‘जनम’ के डॉक्टर का चित्रण करने में तो लेखक ने अद्वितीय कौशल का परिचय दिया है। अत्यन्त सहज स्वभाविक ढंग से आगे बढ़ती है कहानी और अचानक झटका देकर एक कडुए सच से साक्षात्कार करा जाती है।
दूसरी कोटि में ‘झोंका’ है। एसी कहानियां पढ़ने में जितना आनन्द देती हैं, लिखते समय लिखने वाले को उससे कई गुना ज्यादा आनन्दित करती हैं। मनोभावों का जितना स्वाभाविक चित्रण इस कहानी में हुआ है वह लेखक के लेखन कौशल का प्रमाण है।
बिना किसी अतिरिक्त नाटकीयता या जुगाड़ का सहारा लिए कही गयी यह कहानी सुबह की सैर जैसा आनन्द दे जाती है। आगे ओमा शर्मा का लेखक किस प्रवृत्ति को प्राथमिकता देगा यह भविष्य के गर्भ में है।
ओमा शर्मा जिन्दगी के चितरें हैं। इनकी कहानियां धड़कती हूई जनसामान्य की जिंदगी की आख्यान हैं। वहां आप साम्यवाद, मार्क्सवाद, पूंजीवाद, जातिवाद या जादुई यथार्थवाद, स्वप्नवाद, प्रभाववाद जैसे चश्में लगाकर कुछ विरल कुछ विशिष्ट जैसी चीज की तलाश न करें। यह कहानियां कोई पूर्व निर्धारित ढांचा बनाकर उसमें फिट की गयी कहानियां नहीं हैं। फिर भी जिन्दगी में विचारधारा में, व्यवहार में आनेवाले महत्वपूर्ण परिवर्तन को किस सहजता से रेखांकित करती है इसे ‘शुभारंभ’ पढ़कर आसानी से समझा जा सकता है। कैसे आदमी अंदर से बाहर तक अचानक बदल जाता है और इस बदलाव के दौरान कितनी उठा-पटक और टूटन होती है, यह इस कहानी में दृष्टव्य है। इसी तरह ‘काई’ भी अपने आप में विशिष्ट कहानी है।
विज्ञान अध्यापक किस प्रकार एक टैक्स चोर की भूमिका में उतरे मालूम पड़े हैं यह देखकर एक ओर कथा कहानी है, श्रद्धा के तार तार उड़ते हैं, दूसरी ओर स्वयं अध्यापक कितनी वेचारगी और रिरयाहट के दल के खड़ा दिखाई पड़ता है। ‘संकट का संपर्क’ लघु कथा तो अपने इतने छोटे कलेवर में जिस प्रकार मर्मस्थल को छूती है वह अद्भुत है। सचमुच आज की जिन्दगी इतनी एकांकी होती जा रही है कि तय कर पाना नितान्त कठिन है कि संकट के समय किसे बुलाया जा सकता है? कौन खबर पाते ही सारा काम छोड़कर भागा-भागा मदद के लिए आ सकता है? एक नाम भी खोजना कठिन होता जा रहा है। आज के भयावह यथार्थ पर यह लघु कथा एक भारी भरकम प्रश्न चिह्न है।
अपने पहले कहानी संग्रह के ओमा शर्मा काफी उम्मीद जगाते हैं।
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