”आधार प्रकाशन ” से प्रकाशित ओमा शर्मा की किताब ‘अन्तरयात्राएं: वाया वियना” इस शीर्षक को पढ़कर अनायास पुस्तक की विधा का अंदाज़ लगाना ज़रा मुश्किल है इसीलिये किताब पढने की शुरुवात लेखकीय ‘’उपकथन’’ से की जिसमे लेखक ने इस किताब को लिखने की मंशा ( उद्देश्य ) , इन अंतर्यात्राओं की भूमिका या उसकी प्रस्तावना को स्पष्ट किया है | लेखक स्वयं से ही प्रश्न करते हैं कि (काफ्का के मतानुसार ) क्या सत्य के संधान के लिए गल्प रचना सदैव आवश्यक है ?’’ फिर इस के समाधान का दायित्व स्वयं उठाते हुए ये स्पष्ट करते है कि वस्तुतः यथार्थ के सृजन में गल्प की नहीं उसकी तटस्थ और इमानदार निगाह की आवश्यकता होती है’’ लेखक के प्रारम्भिक उक्त उपकथन ने ही इस किताब को पढने की उत्सुकता में कुछ और इजाफा कर दिया | बहरहाल …इन अंतर्यात्राओं के सहयात्री होने से पूर्व अब तक इसकी वास्तविक विधा का आभास होना बाकी था| हालाकि बगैर किसी विधायी टैग के भी इन्हें पढ़ा जा सकता था जैसे भौगोलिक यात्राओं का वृत्तांत ( लेकिन फिर लेखक ने इन्हें अंतर्यात्रायें नाम क्यूँ दिया ? ये भी उलझन थी )| उपन्यास? वो भी नहीं ,कहानी संकलन ,लेख, कथेतर साहित्य ,आत्मकथा…या इन सबका मिश्रण .. लेकिन कुछ ही आगे जाकर लेखक ने ये स्वयं ही सुनिश्चित कर दिया कि ये विभिन कालखंडों और भौगोलिक क्षेत्रों से सम्बद्ध उनकी निजी डायरियां हैं | यानी यात्राओं में रची अंतर्यात्रायें | अब किताब को पढने की उत्सुकता और भी तीव्र हो गयी |( महापुरुषों की जीवनियाँ /आत्मकथाएं पढने में यूँ भी रूचि रही है और फिर अंश जब स्टीफन स्वाइग या उन जैसी विश्वख्यात शख्शियत से सम्बंधित हों वो भी वियना –साल्जबर्ग में उनके ठीये – ठिकानों से होते हुए जीवन ,संघर्षों ,रचनाकर्म से सम्बंधित तो किताब को छोड़ा नहीं जा सकता था | अब तक स्पष्ट हो चुका था कि ये अनुभव सिर्फ यात्रा वृत्तांत नहीं हैं |बल्कि लेखक की जीवन यात्रा के कुछ बेहद महत्वपूर्ण और अविस्मरनीय पलों का लेखा जोखा है जिसे लेखक ने अपने अनुभवों, अपने शब्दों व् अपने विचारों से गढ़ा है|
8 अलग अलग विषयों पर लिखे गए चेप्टर दरअसल लेखक की भौगोलिक ,साहित्यिक/संस्कृतिक व् व्यक्तिगत अनुभवों /अनुभूतियों पर किये गए संधान हैं |जो स्टीफन स्वाइग की ‘’ज़मीन’’ से शुरू हो ‘जादू टोनों के देश असम , उनके गाँव ,सभ्यतागत निकष का साक्ष्य स्विटज़र लेंड और फिर अंत में टॉलस्टॉय पर लिखे स्वाइग के ‘’आत्म–शब्द चित्र ‘’ के महीन विश्लेषण (जो अद्भुत अनुभूति कराता है ) पर जाकर समाप्त होते हैं |अंतर्यात्राओं का ये आख़िरी पडाव बेहद दिलचस्प और महत्वपूर्ण है |इसके अतिरिक्त बीच बीच में लेखक के निजी प्रकरण भी हैं जिनमे वो बेहद संवेदनशील और दार्शनिक अंदाज़ में नज़र आते हैं जैसे ‘’एक म्रत्यु का साक्ष्य’ जिसमे उनके एक करीबी मित्र के जीवन की विडम्बनाओं का मार्मिक वर्णन है और जो किताब के अन्य पढ़े गए ‘’खण्डों’’ से इतर एक आत्मकथा या कहानी की अनुभूति पाठक को कराता है | लेकिन न जाने क्यूँ ये किताब ‘’विधा’’ की द्रष्टि से जितनी लीक से अलग और एक पाठक को लेखक के वैविध्यपूर्ण अनुभव से रूबरू कराती है वहीं विषयों का इस कदर बिखराव ( विश्व प्रसिद्द लेखकों के जीवन , विचारों व् साहित्य से लेकर एक निजी ‘’कहानी’’ तक ) पाठक को कुछ भटकाव की अनुभूति कराती है | हालाकि इन सब अनुभवों ( यात्राओं से अंतर्यात्राओं तक )में लेखक की स्पष्ट द्रष्टि, उनके पाठकीय ज्ञान की प्रखरता और वैविध्यता पूर्ण इस प्रयोगधर्मिता का स्वागत किया जाना चाहिए |दरअसल हिन्दी का पाठक एक पाठकीय परम्परा का अभ्यस्त हो गया है जो अपने ‘’ऑर्बिट’’ (कम्फर्ट जोंन ) से बाहर निकलना नहीं चाहता लिहाजा वो कहानी संग्रह की अलग अलग कहानियों को तो मंजूरी देता है लेकिन एक ही वृत्तांत के इतने ‘’दूर दूर छितरे विषयों’’ में होने वाली दिमागी भाग दौड़ को जल्दी स्वीकार नहीं करता |खैर …|हालाकि हर चेप्टर अपने आप में अद्वितीय अनुभूति और जानकारियों से परिपूर्ण है … जैसे गुजरात के लोगों की मनोवृत्ति, रहन सहन ,शिक्षा,हिन्दू मानसिकता, गोधराकांड आदि को लेखक ने बहुत बारीकी से चित्रित व् विश्लेषित किया है |इसी बीच में लेखक अपने पाठकों को गाँव की पुनर्यात्रा पर भी लिए चलते हैं | न सिर्फ इस बल्कि सभी खण्डों की खासियत है लेखक की बेहद परिष्कृत भाषा , उन की संवेदनशीलता, उनके विचार और वृहद अनुभव क्षेत्र | लेखक इफरात हैं ..किताबें अनगिनत हैं लेकिन ज़रूरी यह नहीं कि किताबों में लिखा क्या है ज़रूरी है कि उन्हें लिखा कैसे ( कितनी हुनरमंदी और जीवन्तता से ) गया है |ओमा जी इस गुण के विशेषग्य हैं ये तो इस किताब को पढ़कर सिद्ध हो गया |यकीन न हो तो कुछ वाक्य विन्यास का जायजा लीजिये ‘’स्वाइंग और हिटलर दौनों के वारिस नहीं लेकिन हिटलर के मानस पुत्र आज भी बड़ी तादाद में दिखाई देते हैं | या फिर ‘’दोस्तोव्स्की दुःख में डूबा तो है पर सुख को लालायित नहीं ‘’|और एक मजेदार सच भी ‘’लेखिकी का एक मजेदार पक्ष यह भी तो है कि यह अछे खराब से नहीं ,मांग आपूर्ति की शक्तियों से संचालित होती है |’’ इस दौरान काफी किताबें पढीं लेकिन ये किताब अपनी वैविध्यता , जानकारियों व् विशिष्टता के साथ कुछ ख़ास प्रभाव छोड़ गयी ये सच है |ओमा जी को इस अद्भुत किताब के लिए साधुवाद .. (वंदना देव शुक्ल)
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