Oma Sharma's Blog
  • मेरी किताबें
  • मेरी समीक्षाएं
  • कहानी
  • लेख
  • रचना प्रक्रिया
  • मेरी किताबों की समीक्षाएं
  • Diaries
  • Interviews Taken
    • Interviews Given
  • Lectures
  • Translations

मोहनकृष्ण बोहरा, जनसत्ता, दिल्ली, 12 सितंबर, 2010)

Dec 05, 2016 ~ Leave a Comment ~ Written by Oma Sharma

कथाकार ओमा शर्मा के नए संग्रह ‘भविष्यदृष्टा’ को उलटते-पलटते हुए दृष्टि कहीं मुक्तिबोध के संदर्भ ‘एक नीच ट्रेजेडी’ पर, तो कहीं शमशेर से लिए गए संदर्भ ‘काल तुझसे होड़ है मेरी’ पर अटक जाती है। ऐसे संदर्भ नई रचनात्मकता का निदर्शन करते हैं। पुस्तक के अंत में रखी गई भूमिका में फोकनर, रिल्के, निर्मल वर्मा आदि के उल्लेख भी ध्यान खींचते हैं। यह कथन वैद का स्मरण कराता है कि ‘वे इतने सहज हो गए कि हम सब असहज होने लगे जैसे उस डिब्बे में वे दूसरी ट्रेन चला रहे हो।’ इस तरह की काव्यात्मकता भी कहीं दृष्टि में टंग जाती है, ‘जो डर किसी सुनसान अंधेरे की तरह आतंकित कर रहा था, किसी सुनहली गुनगुनी धूप-सा बिखर गया।’ या ‘हर स्याह रात सूर्योदय तक ही तो रहती है।’ एक युवक को उसकी स्वप्न सुंदरी की मुस्कराहट खिले हुए गुलाब-सी लगती है। धीरे-धीरे वह गुलाब सांसों के साथ भीतर उतरने लगता है। युवक की इच्छा होती है कि वह उसे कविता सुनाए, लेकिन ‘कविता की समझ उसे होगी नहीं, पचास फीसद से ज्यादा कवियों को नहीं होती।’

ऐसे बिखरे हुए अंश देख कर अनुमान होता है कि कहानियों की भाषा कुछ अलग मिजाज की होगी और अंदाजे-बयां भी विशिष्ट होगा। लेकिन पढ़ने पर पाते हैं कि ऐसे प्रयोग जहां-तहां ही हैं, ये उसकी शैली के निदर्शक नहीं हैं। उसकी भाषा परिनिष्ठित है, प्रसाद गुणयुक्त और प्रवाहपूर्ण है और उसकी साहित्यिक रुचि भी झलकाती है, लेकिन लेखक के नएपन का पता नहीं देती। कहानियों की बुनावट भी सरल और सादगीपूर्ण है, इनमें विन्यस्त जीवन भी जटिल नहीं है, बल्कि कुछ कहानियों में तो किस्सागोई ही अधिक है, ‘जनम’ और ‘मर्ज’ कहानियों में तो विशेष रूप से, और कमोबेश ‘काई’ और ‘भविष्यदृष्य’ में भी।

मानवीय-सत्य की व्यंजना सभी कहानियां करती हैं और इन्हें पढ़ना रोचक भी है। भाषा की दृष्टि से ‘मर्ज’  कहानी कुछ अलग है। इसमें लेखक ने अरबी-फारसी शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया है। कथा में परिवार चूंकि मुस्लिम है, इसलिए भाषा में ये शब्द अप्रचलित होकर भी उतने अखरते नहीं हैं, हालांकि अपेक्षा होती है कि कोष्ठक में इनके अर्थ भी रहते। कुछ ग्राम्य शब्दों के अर्थ उसने दिए हैं, जैसे पांयपेड़ (नजदीक),या लमढेंक (सींकिया)। लेकिन इस तरह के शब्दों की एक सूची है, जिनका अर्थ एकाएक स्पष्ट नहीं होता, कूमिल, रबूद, फप्फस, सिमाने, याड़ी, अवट, टहेला, ऐला, नुनखुरा आदि। कुछ का कामचलाऊ अर्थ रचना प्रवाह में खुल जाता है, लेकिन सभी का नहीं खुलता। इसके बावजूद भाषा कुल मिला कर बोधगम्य है और पाठक को बांधे रहती है।

इन कहानियों की एक विशेषता यह है कि इनके शीर्षक सुविचारित है। ये पढ़ने के लिए तो पाठक को चाहे उकसाते नहीं है, लेकिन हैं सभी व्यंजक। ईमानदार आदमी पहली बार रिश्वत लेकर आगे के लिए अपनी झिझक तोड़ लेता है, इसलिए कहानी को ‘शुभारम्भ’ कहा गया है। अविवाहित अधेड़ को विवाह की कुछ संभावना नजर आई है, यह उसके लिए एक ‘जनम’ ही है। जाफर शारीरिक रूप से तो बीमार है ही, जो हर कदम पर उसकी सहायता करता है, उस गोविल को भी संशय की दृष्टि से देखता है। वह मानसिक रूप से भी बीमार है, इसलिए कहानीका शीर्षक है, ‘मर्ज’ । लावण्या प्रांजल को नमस्ते क्या कर लेती है, उसे अनुभूति होती है, ठंडी हवा के ‘झोंके’ की। ‘काई’ स्कूल के जर्जर भवन पर तो जमी ही है, संबंधों पर भी क्या कम जमी हुई है? अफसर अपनी विजिट में कंडोलैंस भूल भी जाए तो क्या, संबंध तो वही है, ‘कंडोलैंस विजिट’।

लेखक की एक विशेषता यह जान पड़ती है कि उसका दखल साहित्य के अलावा ज्योतिष, होम्योपैथी और रसायन शास्त्र जैसे विषयों में भी है। लेकिन कहानी में उसका विनियोग आत्मसात रूप में ही होना चाहिए, उसे उसकी विशेषज्ञता का ज्ञापक होकर नहीं रहना चाहिए। शिक्षक को देख कर शिष्य को उसके द्वारा पढ़ाया हुआ प्रसंग तो स्मरण आ सकता है, लेकिन उसे दोहराने के लिए वहां कोई अवकाश नहीं हो सकता। ‘काई’ कहानी में मैंडलीफ के महत्व प्रतिपादन का कोई औचित्य नहीं है। फिर, यह कैसा ज्योतिष ज्ञान है कि बारहवें ग्रह (?) में बैठा शनि चौथे स्थान को देख रहा है। जिस सतपती के लिए लेखक का कहना है कि बदकिस्मती ने उसका पल्लू नहीं छोड़ा, लेकिन उसने भी अपना जीवट नहीं छोड़ा। ज्योतिष में विश्वास उसी सतपती को भाग्यवादी बना देता है।

किस्सागोई में निरंकुशता रह सकती है, लेकिन कहानी में वह अखरती है। ‘जनम’, ‘मर्ज’, ‘भविष्यदृष्टा’ और ‘काई’ में घटनाएं निरंकुश रूप से ही घटती हैं। इनमें लेखक ने कथासूत्र अपने हाथ में कस कर थाम लिया है। नतीजतन, पात्र निेरे कठपुतली होकर रह गए हैं। घटनाएं मनमाना विस्तार पाती चली गई हैं। लेखक संयम बरतता तो ये कहानियां सुगठित होती और प्रभावशाली भी।

‘जनम’ लंबी कहानी कही जाएगी, लेकिन ‘मर्ज’, ‘भविष्यदृष्टा’ और ‘काई’ लंबी कहानियां नहीं हैं। इनमें एकाधिक कहानियां गुंथ गई हैं। ये बहु-संवेदी रचनाएं हैं। लेखक का ध्यान इस ओर नहीं है।

लेखक में एक वृत्ति कहानी को अप्रत्याशित मोड़ देकर चौकाने की भी है। ‘जनम’ तो चौंकाने के कोण से ही लिखी गई है, ‘भविष्यदृष्टा’ में भई वह हमें चौंकाता चलता है और ‘काई’ में भी। इस दृष्टि से ‘शुभारम्भ’ और ‘झोंका’ भिन्न मिजाज की कहानियां हैं। घटनाधिक्य से मुक्त। ‘झोंका’ में फिर कुछ चौंकाना है और कुछ घटनाएं भी, लेकिन ‘शुभारम्भ’ में तो घटना है ही नहीं। एक बीत चुकी घटना ने कमलकांत दीक्षित का मानस तंत्र झकझोर दिया है, कहानी उसी की गूंज-अनुगूंज है। एक ईमानदार व्यक्ति अपने कार्यालय में बैठा जीवन में पहली बार नकद रिश्वत ले तो लेता है, लेकिन बाद में भेद खुलने की आशंकाओं के चक्र में किस कदर फंस जाता है, इसका लेखक ने बड़ा सूक्ष्म चित्रण किया है।

इसी तरह, ‘झोंका’ कहानी प्रेम-भावना का उद्वेलन है। लावण्या को प्रेमिका के रूप में पाने की कल्पना प्रांजल के लिए कैसे शीतल हवा का झोंका बन कर आती है, इसका लेखक ने मनोयोग से चित्रण किया है। ‘कंडोलैंस विजिट’ भी इसी श्रेणी की कहानी है, लेकिन उसकी अर्थवत्ता दोहरी है। यह एक अधिकारी की मातहत के प्रति तिरस्कार की व्यंजना तो है ही, साथ में उसका बड़ा हासिल यह दिखा सकने में है कि कैसे तिरस्कृत होकर भी मातहत अपने हर तिरस्कार के साथ साहब की किसी अन्य अवसर पर दिखाई गई उदारता का स्मरण कर इस तिरस्कार का खुद ही मार्जन पा लेता है। इस मार्जन में हम व्यंग्य भी पढ़ सकते हैं, वह शायद उसमें है भी, लेकिन अपने स्वाभिमान को गिराने के लिए आत्मग्लानि से भरते हम उसे कहीं भी नहीं देखते। इस तरह, मातहत वर्ग के रक्त में रसी-बसी गुलामी-वृत्ति  भी यहां समान रूप से व्यंग्य है।

इस संग्रह में कुछ लघु कथाएं भी हैं। ये सभी कथाएं प्रभावी हैं। ‘नवजन्मा’ शीर्षक की कथाएं इस बात की तरह-तरह से व्यंजना है कि आज भी समाज में लड़की का जन्म एक हादसा है। ‘संकट का संपर्क’ व्यक्ति के जीवन में छीजती जा रही आत्मीयता की व्यंजना है। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि व्यक्ति अपने आपात संकट में अविलंब आ उपस्थित होने लायक एक भी व्यक्ति का नाम दृढ़ विश्वास से स्मरण नहीं कर पाता है।

Posted in Reviews of my books
Twitter • Facebook • Delicious • StumbleUpon • E-mail
Similar posts
  • संवेदन आवेग का अनुवाद : स्टीफन स्वाइग...
  • देश-विदेश की कतरनें मार्फत ‘अन्तरयात्...
  • देश-विदेश की कतरनें मार्फत ‘अन्तरयात्...
  • रचनाकार और उसका अंतर्जगत
  • से. रा. यात्री (पल-प्रतिपल, जून-सितम्...
←
→

No Comments Yet

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



Oma sharma, born 1963, is a noted Hindi writer. He has published eight books that include three collections of short stories, namely ‘ Bhavishyadrista’(भविष्यदृष्टा ), ‘Karobaar’(कारोबार) and Dushman Memna(दुश्मन मेमना). Besides, he is widely known in India for re-igniting the interest of all and sundry in the works of noted Austrian legend Stefan Zweig. He has translated the autobiography of Stefan Zweig `The world of yesterday` in Hindi titled ‘Vo Gujra Zamaana’(वो गुजरा जमाना ) as also selected stories of the master in his स्टीफन स्वाइग की कालजयी कहानियाँ(Classic stories of Stefan Zweig) . Adab Se Muthbhed, (अदब से मुठभेड़) his book by way of literary encounters with Legends like Rajendra yadav, Mannoo Bhandari, Priyamvad, Shiv murti and M F Husain has been hugely appreciated for its critical probing.

He has published his travel diaries titled ‘Antaryatrayen :Via Vienna’( अन्तरयात्राएं: वाया वियना ) which records a long, never before attempted kind of essay about Stefan Zweig, Vienna and the cultural aspect of Austria. He is recipient of the prestigious Vijay Verma Katha Sammaan (2006), Spandan Award(2012) and Ramakant Smriti Award(2012) for his short stories.

संपर्क: A-1205, Hubtown Sunstone, Opp MIG cricket club, Bandra east. Mumbai 400051
ईमेल: omasharma40[at]gmail[dot]com

Books On Amazon

अन्तरयात्राएं वाया वियना 20160516_145032-1 अदब से मुठभेड़

Recent Posts

  • अहमदाबाद दूरदर्शन(डीडी-गिरनार) के कार्यक्रम ‘अनुभूति’ लिए विनीता कुमार की ओमा शर्मा से बातचीत:
  • पत्रों में निर्मल
  • कथाकार ओमा शर्मा से युवा आलोचक अंकित नरवाल के कुछ सवाल
  • संवेदन आवेग का अनुवाद : स्टीफन स्वाइग की कहानियां
  • देश-विदेश की कतरनें मार्फत ‘अन्तरयात्राएं : वाया वियना’

Pure Line theme by Theme4Press  •  Powered by WordPress Oma Sharma's Blog