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मूलचंद गौतम (समयांतर, अक्तूबर, 2003)

Dec 05, 2016 ~ Leave a Comment ~ Written by Oma Sharma

ओमा शर्मा की कहानी ‘काई’ को पढ़ने से, उनके लिखने से मेरा परिचय हुआ। इस कहानी में व्यक्त स्थानीय भाषिक प्रयोगों से मैंने कहानीकार की जड़ों को जाना जिससे उनकी कहानियों के प्रति मेरी उत्सुकता और आत्मीयता बढ़ी। बाकी कहानियों का संबंध और विकास इसी एक कहानी के क्रम में है। यह जैसे ओमा शर्मा के खुद का विकास क्रम भी है। उनके अनुभव और अभिव्यक्ति की कला का परिपाक। पात्रों और चरित्रों के बीच यहीं-कहीं कहानीकार खुद उपस्थित है- नाम और स्थान परिवर्तन के साथ-अपने आस-पास की दुनिया को पहचानता हुआ, उसे रचना के रूप मे ढालता हुआ। और यह रचना के प्रारंभ की अमूमन-औसत प्रक्रिया है। सीमित अनुभव कोष या तो इतने में ही चुक जाता है या दोहराव का शिकार होकर चकरघिन्नी बनकर व्यर्थ हो जाता है। सामर्थ्यवान रचनाकार में क्षमता और प्रतिभा के अनुसार विस्तार पाता है। चूंकि ‘भविष्यदृष्टा’ ओमा शर्मा का पहला कहानी संग्रह है, इसलिए इसमें एक संभावनापूर्ण शुरुआत से लंबी उड़ान के संकेत ही पाए जा सकते हैं।

चूंकि ओमा शर्मा की कहानियां जीवन के अुभवों की प्रक्रिया में पाई गई हैं, अतः उनमें शिल्प की गझिन बुनावट और गढ़न प्रायः नहीं है। हां, उनमें इन अनुभवों की एक औसत तराश अवश्य है, जिससे उनके यथार्थ की मार्मिकता बढ़ जाती है और उनमें वह सत्य झलकने लगता है जिसे कहानीकार दिखाना चाहता है। ‘काई’ को ही लिया जाय तो एक विद्यार्थी जीवनभर अपने विद्यालयों-शिक्षकों-सहपाठियों को लेकर अद्भुत-अनोखी-कल्पनाओं-आदर्शों में घिरा रहता है, लेकिन कुछ समय बीत जाने के बाद पुनः उन्हीं जगहों-चरित्रों का सामना होने पर उसके सामने एक नया ही अध्याय खुलने लगता है। उसकी नजर और निगाह में आलोचानात्मक बदलाव की शुरुआत ही जैसे उसे पुराने अनुभव से मुक्तकर नई दुनिया में ले आती है। सतपाल सिंह का अनुभव शयामवीर की कटूक्तियों का पूरक है। इनकम टैक्स कमिश्नर सतपाल के सामने हरीकिशन मास्साब की अतीत और वर्तमान की छवि का फर्क जैसे ‘काई’ की सफाई है। जिससे सतपाल के दिमाग और याद्दाश्त को धूल-जाले साफ हो जाते हैं।

मुकर्रम इंटर कालेज का यही सतपाल उर्फ ओमा शर्मा डी-स्कूल का कामयाब विनय कुमार कंसल उर्फ ‘अंकल’ है। यही ‘झोंका’  कहानी का प्रांजल गर्ग और ‘कंडोलैंस विजिट’  का सोनकर, ‘मर्ज’  का नजीर, ‘जनम’  का मुद्गल तथा ‘शुभारंभ’  का कमलकांत दीक्षित यानी की पूरी कहानियां जैसे एक ही व्यक्ति को विभिन्न स्थितियों के अनुभव। औरों के ऐसे ही अनुभवों का साझा करते हुए। ‘शुभारंभ’ के दीक्षित की तरह नौकरी में रिश्वत के अन्नप्राशन संस्कार के अंतर्द्वद्व-ऊहापोह को झेलते हुए उसके आदी और अभ्यस्त हो चुके निगम में बदलते कितनी देर लगती है। आखिर यह अपने लोकतंत्र की अनिवार्य बुराई जो है- कभी कैश में, कभी काइंड-सर्विस में वसूलने में कोई गुनाह नहीं। बल्कि अब तो इसकी अपेक्षा न रखने वाले बचे ही कहां हैं- दुर्लभ प्राणी। बॉस का ‘कंडोलैंस विजिट’  भी जहां सहानुभूति को भुनाने का माध्यम को, वहां मरने वाले का महत्व बेमानी है। ओमा शर्मा ठंडी क्रूरता से इस माहौल को खोलने में माहिर है- खुद को समेटते हुए- मानवीय बने रहकर। आत्मीयता सहित तटस्थ्य का एक बेहतर कलात्मक उदाहरण ‘झोंका’  में दिखता है। लागलपेट करके अपने अंदर ऊलजलूल चीज पालकर कोई व्यक्ति इतना तटस्थ हो भी नहीं सकता। ठंडा खाने की यही आदत रचना के लिए स्पेस बनाती है, वरना किसे फुरसत है- इस सबकी कि लाल किले की औकात बताता फिरे, गुर्बत और बीमारी का पीछा करता फिरे, कि ट्रेन के सफर में किसी बलवंत राय के ‘जनम’  की कहानी धैर्य से सुने और लिखे। उनके लघुकथाओं के प्रयोग तो एकदम-अचूक-और सटीक।

ओमा शर्मा की कहानियों में शिल्प और बारीक बुनावट का चाकचिक्य नहीं है जो चौंकाए या उलझाए। जीवन की सहजता के बीच से खुलती कहानी स्थितियों की ऐसी दृष्टि देती है कि व्यंग्य और विद्रूप एक कला, एक अलग तरह का बौद्धिक आनंद देता है। ‘आजादी की इस पचासवीं सालगिरह में अपरिचित स्थानों और व्यक्तियों के बीच अंग्रेजी से सेंध मारना कितना सहज-स्वाभाविक लगता है। हिंदी तो जैसे कोई अतिरिक्त योग्यता है। (पृ.113) और उनकी ठेठ हिंदी का ठाठ-कूमिल, टोहके, पोत, भान्जी के मामा तो उन्हीं के पल्ले पड़ सकता है जो उस अंचल की भाषिक विशेषताओं से वाकिफ है। यानी कि कहानी में विवादास्पद होने के लिए जिन टोटकों की आज जरूरत है, ऐसा कुछ नहीं है- ओमा शर्मा के पास।

फिर भी एक कहानी को चर्चा का केंद्र बिंदु बनाकर बात करने की सुविधा हो तो ‘भविष्यदृष्टा’ को उनकी ऐसी कहानी माना जा सकता है, जिसमें लेखकीय क्षमता का सर्वोत्कृष्ट रूप दिखाई देता है। कटक की दारिद्रय भरी जिंदगी से दिल्ली के स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स तक का सफर तय करके भी नाकामयाब रहे सतपती और सिविल सेवा में पहुंचे विनय कुमार कंसल उर्फ अंकल की तुलनात्मकता क्या ज्योतिष और भाग्य के पक्ष जाती है? प्रशांत भाई की मदद क्या अंग्रेजी के मकड़जाल को तोड़ने में सक्षम हो सकती है? तंत्र में घुसने की योग्यता और अयोग्यता का मापदंड और उससे उत्पन्न हीनता तमाम सहयोगों पर भारी पड़ती है। इसी कारण सतपती को ससुर के सहयोग से नौकरी के एवज में मिरगी ग्रस्त पत्नी और पुत्री मिलती हैं। सतपती का ज्योतिष ज्ञान इस यथार्थ के सामने जितना विद्रूपभरा और विडंबनापूर्ण लगता है, वह इस भविष्यदृष्टा के सपनों का मजाक है। इस नियति का कारुणिक अंत एक औसत गरीब की यातना है। एक-एक दृश्य का अंत की भयाकारता को निरंतर बढ़ाता जाता है। रेतीले बिल में समाता पूरा परिदृश्य लुप्त होती मनुष्य जाति के अपरिमित दुःखों का अनुमान लगाने के लिए काफी है। इसमें अकेले सतपती और उसका परिवार भर ही शामिल नहीं है।

ओमा शर्मा की कहानियों में हल्की-फुल्की ताजगी के बीच में मौजूद गंभीरता और ट्रीटमेंट एक बड़े सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ का संकेत करते हैं। घर में लड़की का जन्म हो या महानगरों की भीड़ में अकेला पड़ता आदमी या क्रूर व्यावसायिकता, ओमा शर्मा की निगाह एक बदलते माहौल की बरीकियों को ओझल नहीं होने देती। ‘मर्ज’ के मामूजान की अभावग्रस्त भाग-दौड़ मे दम तोड़ती जिंदगी सुख के चंद क्षण नहीं भोग पाती। इन अभावों में कैसे कोई संबंधों को निभाए। यह शहरों में दम तोड़ते तमाम मामूजानों की दास्तान है जहां ‘झोंका’  जैसे गुनगुने रोमांस की कल्पना ही मुश्किल है। वक्त काटने का यह मध्यवर्गीय चोंचला एक भ्रम को अलावा क्या दे सकता है, लेकिन यह तो विकृतियों की शुरुआत है।

अपने जीवन के प्रारंभिक दौर के आस-पास की इस दुनिया का जो जटिल संजाल विकसित हुआ है, वह भी रचनाकार कहानियों में उसकी झलक आए। फिलहाल तो एक सुखद प्रतीक्षा ही की जा सकती है।

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Oma sharma, born 1963, is a noted Hindi writer. He has published eight books that include three collections of short stories, namely ‘ Bhavishyadrista’(भविष्यदृष्टा ), ‘Karobaar’(कारोबार) and Dushman Memna(दुश्मन मेमना). Besides, he is widely known in India for re-igniting the interest of all and sundry in the works of noted Austrian legend Stefan Zweig. He has translated the autobiography of Stefan Zweig `The world of yesterday` in Hindi titled ‘Vo Gujra Zamaana’(वो गुजरा जमाना ) as also selected stories of the master in his स्टीफन स्वाइग की कालजयी कहानियाँ(Classic stories of Stefan Zweig) . Adab Se Muthbhed, (अदब से मुठभेड़) his book by way of literary encounters with Legends like Rajendra yadav, Mannoo Bhandari, Priyamvad, Shiv murti and M F Husain has been hugely appreciated for its critical probing.

He has published his travel diaries titled ‘Antaryatrayen :Via Vienna’( अन्तरयात्राएं: वाया वियना ) which records a long, never before attempted kind of essay about Stefan Zweig, Vienna and the cultural aspect of Austria. He is recipient of the prestigious Vijay Verma Katha Sammaan (2006), Spandan Award(2012) and Ramakant Smriti Award(2012) for his short stories.

संपर्क: A-1205, Hubtown Sunstone, Opp MIG cricket club, Bandra east. Mumbai 400051
ईमेल: omasharma40[at]gmail[dot]com

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