अपने समय के अंतर्विरोधों को अलग ही अन्दाज में पेश करने के कारण ओमा शर्मा की ओर ध्यान खिंचना स्वाभाविक है। उनके कहानी संग्रह ‘भविष्यदृष्टा’ में कुल नौ कहानियां हैं।
संग्रह की पहली कहानी ‘शुभारम्भ’ शीर्षक कहानी से ही ओमा यह कमाल दिखाते हैं। भ्रष्ट होते जा रहे समय में पहली रिश्वत एक तरह से शुभारम्भ ही तो है। ऐसा नहीं कि मुख्य पात्र रिश्वत लेने को सही मानता है, इसे लेकर अन्तर्द्वन्द्व है लेकिन पूरी नाटकीयता के साथ वह खुद पर अनायास ऐसी विजय पा ही लेता है जो उसे नयी दुनिया का एक हिस्सा बना देती है।
दीक्षित साहब का जेहन किस तरह सलूजा बदल कर चला जाता है यह छोटा-सा कथ्य इस रचना में खिल उठा है। कहानी के अन्त में ब्रीफकेस में समाती नोटों की गड्डी जब गीता के श्लोक को स्मरण कराती है तो और भी गहरी चोट लगाती है।
ओमा के यहां चरित्रों की कुंठाओं की दुनिया क्रमशः खुलती जाती है। ‘जनम’ के होमियोपैथ हों या उनकी अर्जित दुनिया ‘जिंदगी यहां’ कहानी में आती है। किस्सागोई के अन्दाज में पात्र पाठक के और करीब आ जाते हैं।
ओमा सहज कथ्य के माध्यम से जीवन को व्याख्यायित करने में यकीन रखते हैं। बदलते जीवन मूल्य उनके यहां बेआवाज प्रवेश करते साफ नजर आते हैं। ‘काई’ में एक अध्यापक निरीह स्थिति में नजर आता है। वह अपने ही एक पूर्व शिष्य से दे-दिलाकर काम करवाने का आग्रह करता है।
ओमा की यह कहानी समय के परिवर्तनशील मूल्यों के दबाव में मुकर्रम इन्टर कॉलेज के एक पूर्व छात्र के माध्यम से काम निकालने का गणित सामने रखती है। अध्यापक हरीकिशन यहां बेहद व्यावहारिक इन्सान के रूप में नजर आते हैं और दुनियादारी के दस्तूरों को बेझिझक शिष्य के साथ साझा करते हैं। यह बदलती जिंदगी का असल यथार्थ है।
भाषा की रवानगी के लिहाज से ‘मर्ज’ का जवाब नहीं। शुरू से आखिरी तक बांधे रखनेवाली यह कहानी परिवार का पूरा माहौल खींच देती है। बात में से बात निकालने की सिफत के चलते ‘मर्ज’ में यह बात चुपके से खुल जाती है कि सबसे बड़ा मर्ज दरअसल है क्या? आर्थिक तंगी। पैसा है तो सब कुछ है। वरना मामू की तरह मुसीबतजदा जिंदगी जीना तो मजबूरी है ही।
संग्रह की सबसे सधी कहानी ‘कंडोलेंस विजिट’। मतलबी आत्मीयता के ढोंग का पर्दाफाश करती यह कहानी बताती है कि मातहत कभी अफसर का आत्मीय नहीं हो सकता। सोनकर की सारी भावुकता धरी रह जाती है जब निगम साहब उसकी मां के निधन पर शोक जाहिर करने के बजाय एक औपचारिक विजिट भर करके लौट जाते हैं। यहां स्वार्थ के लिए सम्बंध निभाने की कला का खुलासा खूब होता है। यह कैसा कंडोलेंस विजिट है जहां आने वाला अपने दो-एक काम और बता जाता है। कहीं-कहीं भाषा का प्रयोग चुभता है। ‘निर्दोष’ की जगह ‘मासूम’ का प्रयोग बेहतर होता।
संग्रह की बेहतरीन कहानी है ‘भविष्यदृष्टा’। कहानी की शुरुआत में दिया श्लोक अन्त में इस तरह कौंधता है कि समूची कहानी नये ही अर्थ से दीप्त हो उठती है। ओमा की यह अपनी कहन है। सहज और खुली।सतपती के जरिये यह कथा पात्र की भी कहानी है। नियतिवाद, भाग्य और ज्योतिष पर विश्वास के घाट से उठाकर यह रचना हमें ऐसी जगह ले जाकर खड़ा कर देती है कि फिर वहां हमारे विवेक के दरवाजे खुलने लगते हैं। दुनिया का भविष्य देखने निकला आदमी खुद कैसी गुंजलक में फंसा है यह साफ नजर आने लगता है। विवरण के बाद विवरण जैसे सतपती के और करीब पहुंचाते जाते हैं। लेकिन कहानी सिर्फ यही नहीं है। सतपती के बहाने यहां रचनाकार, कुछ मूलभूत प्रश्नों से भी टकराता है। डी-स्कूल और उसका परिवेश इस काम में सहायक साबित हुआ है। सतपती का यह सोचना गलत कहां है कि अर्थशास्त्र जैसे विषय में रुचि कम और संशय अधिक है। उपभोक्ता, विक्रेता और अर्थव्यवस्था के जिन मॉडल्स और समीकरणों को इकोनॉमैट्रिक्स के जरिये डी-स्कूल सिखा रहा है, उसमें कितनी मूलभूत गड़बड़ी है। जिन समीकरणों की ओट में उसे गांव और अपनी जलती झोपड़ी दिखती है उन्हीं में ज्योति या पहाड़ी को उसी समय योजना आयोग नजर आता है।
सतपती सरीखे चरित्र का विकास भले ही स्थितियां करती हों लेकिन विकास के साथ बड़े समाज का रिश्ता जरूरी है, यह बात कहानी बेआवाज कह जाती है। भाग्यवादी हो रहे मनुष्य पर यकीन करने की कहानी नहीं है ‘भविष्यदृष्टा’। ‘एस्ट्रोलॉजी इज मोर परफेक्ट ए साइंस दैन इकोनॉमिक्स’ कहने वाला सतपती कहानी के अन्त तक आते-आते इस कदर एक्सपोज हो जाता है कि वह ‘बेचारा’ नजर आने लगता है। जिस चन्द्रिका की कुण्डली में उसे भद्रयोग और राजयोग नजर आ रहे थे वही एपिलैप्सी की शिकार नजर आती है।
ओमा शर्मा जानते हैं कि छोटी कहानियां हमारे वक्त का एक जरूरी फार्म है। इस दृष्टि से ‘नवजन्मा’, ‘कुछ हादसे’ और ‘वजूद का बोझ’ के अन्तर्गत दी गयी लघु कहानियां आकर्षक हैं।
ओमा पूरी संजीदगी से नवजन्मा को लेकर आयी प्रतिक्रियाओं से कथा उठा लेते हैं। बेटी का जन्म और संकट यहां उत्कृष्ट कथासूत्र बने हैं। एकाध छोटी रचनाएं ऐसी भी हैं जहां सिर्फ विचार ही कथा का आधार बन जाता है। ऐसे में अनुभव की अभिव्यक्ति के स्थान पर रचना में सूचना की घुसपैठ शुरू हो जाती है।
ओमा की कहानियों की विशेषता है कि वे टुकड़ों-टुकड़ों में नहीं समूचेपन में पढ़ने का मजा देती हैं। स्थितियों और परिवेश के अनुरूप भाषिक मिजाज गढ़ लेना उन्हें बखूबी आता है। उनकी कहानियां ऊपर से एकरेखीय भले नजर आती हों, लेकिन ऐसी हैं नहीं।
ओमा शर्मा का कथाकार यह बात अच्छी तरह जानता है कि आज जटिल होते जा रहे यथार्थ को समझने के लिए कथा में प्रयोग तो जरूरी हैं ही कथा की नयी-से-नयी जमीन की खोज भी होती रहनी चाहिए।
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