Oma Sharma's Blog
  • मेरी किताबें
  • मेरी समीक्षाएं
  • कहानी
  • लेख
  • रचना प्रक्रिया
  • मेरी किताबों की समीक्षाएं
  • Diaries
  • Interviews Taken
    • Interviews Given
  • Lectures
  • Translations

देश-विदेश की कतरनें मार्फत ‘अन्तरयात्राएं : वाया वियना’ – अंकित नरवाल

Nov 04, 2018 ~ Leave a Comment ~ Written by Oma Sharma

मूलतः अर्थशास्त्र के विद्यार्थी होने के बावजूद ओमा शर्मा समकालीन हिंदी कथा-साहित्य का वह नाम हैं, जिनकी कलम सच्चा, पर पक्का लिखने की स्याही में डूबी हुई है। दो कहानी-संग्रहों व साक्षात्कार, निबंध और अनुवाद की क्रमशः एक-एक किताब लिख चुके शर्मा अपने लेखन के प्रारंभिक दौर में ही अनेक साहित्यिक पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। इधर उनका नया यात्रा-संग्रह ‘अन्तरयात्राएं : वाया वियना’ भी खासा चर्चित हो रहा है और एक साल उपरांत ही दूसरे संस्करण के रूप में छप कर खूब पढ़ा जा रहा है। विजय कुमार के शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है, “यह पुस्तक पढ़ने वाले को कई अर्थों में सृजन के एक उच्चतर और विराट धरातल पर ले जाती है। दो महायुद्धों के बीच इतिहास का एक विशेष काल-खण्ड, जगहें, व्यक्ति, घटनाएं, परिवेश– यह सब जैसे ओमा शर्मा के लेखन के अन्तःजगत से एकमेव हो गया है। खोजने की यह धुन, भटकने का यह पागलपन, वैचारिकता की यह उठान, त्रासद की यह गवाही, बहिरंग और मन की आंखों का यह सम्मिलन, यह सहजता, यह सादगी, रोमान के साथ-साथ यह धीरज और विश्लेषण की सजगता– ओमा शर्मा ने न जाने कितनी बातें एक साथ अपने भीतर साध ली हैं। यह यात्रा एक पराये परिवेश में जितनी भूदृश्यों, इमारतों, कोनों, गली-मोहल्लों को जानने की है, उतनी ही अपने रेस्पांसों और अपनी अन्तरयात्राओं की भी है।” अर्थात् यह पुस्तक एक साथ यात्रा के उन दृश्यों को महसूस करने की है, जहाँ रचना और रचनाकार का संपृक्त वर्षों से अपने चाहने वालों के लिए राह बिझाए बैठा है। यह पुस्तक जितनी यात्राओं के संबंध में है, उससे कहीं अधिक उन गहरी अनुभूतियों-विश्वासों के संबंध में है, जो इन स्थानों से जुड़े लेखकों के मार्फत दुनिया-भर में पढ़े और बहुत हद तक जिए गए हैं। वियना शहर से धुसर गाँव तक के अनेक दृश्यों से सराबोर ये वृत्तांत दुनिया को देखने के उन नज़रियों को इजाद करते हैं, जो विज्ञापन के तय संदर्भों में मटमैले हो सने पड़े हैं। बटरोही के अनुसार, “यह किताब कोरा यात्रा-विवरण नहीं है। यह उन कला-प्रसंगों की यात्रा है जिनके बीच से गुजरकर स्वाइग ने संसार के महानतम रचनाकार का सम्मान प्राप्त किया। किताब में यूरोप के अलावा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के भी अन्तरंग चित्र हैं, जो हम भारतीयों को भी अपने ही परिवेश को देखने का नया आयाम प्रदान करते हैं। हिन्दी के पाठकों को यह किताब किसी खास परिवेश को देखने-समझने की अलग अन्तरंग आंख देती है। हिन्दी में इस प्रकार की चित्रण सचमुच विरल है।”

यह ओमा शर्मा का लेखकीय अंदाज है कि वे किसी परिवेश को साहित्य के बरास्ते इस ढंग से कह पाते हैं कि उसमें एक रचनाकार द्वारा ली गईं सांसे तक अपने परिवेश का परिचय देने लगती हैं। स्वाइग, अल्ब्रेख्त ड्यूरर, रेम्ब्रा, एंथोनिस डेक, रूबेन, टीशियन, वेरोनीस, पीटर ब्रूगेल, थिसीयस, दोस्तोएवस्की, फ्रायड, मारिया टेरेसा आदि जैसे अनेक मिथकीय और लेखक चरित्र अपने साहित्यिक-मनोवैज्ञानिक संदर्भों और मिथकीय घटनाओं के सहारे इन विवरणों में आए हैं। वियना, स्विट्ज़रलैंड, जिनेवा, असम, मेघालय, गुजरात और बांग्लादेश आदि के बहुत नजदीक से देखे गए अनेक दृश्य इन अन्तरयात्राओं में मुकम्मल ढंग से बयां हुए हैं। कुल सात यात्राओं से लबरेज़ यह संग्रह हमें इन स्थानों को पुनः नए और जुदा ढंग से देखने की सोच से जोड़ता है।

यात्रा-विवरण ‘वाया वियना : स्टीफन स्वाइग की ज़मीन पर’ वियना की उन गलियों में हमें ले जाता है, जहाँ दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी होने की सारी योग्यताएँ संग्रहित हैं। स्टीफन स्वाइग की लेखकीय ज़मीन को महसूस करने का और उनके साहित्य में रचे-बसे स्थानों में शामिल होने का यह प्रेम ‘वो गुजरा जमाना’ को फिर से मुख्य भूमिका में खींच लाता है। ओमा शर्मा, स्वाइग की सरज़मी पर उतरते ही पहली सांस के साथ यहाँ उनकी लोकप्रियता और पाठक संख्या की शिनाख्त करने लगते हैं और उत्तर रूप में ‘श्यूश नॉवल’ के पाठक होना जान पाते हैं। वे अपने सारे सामान को होटल में रख कर जब यहाँ की धरोहर सांस्कृतिक संग्राहलयों की खोजबीन करते हैं तो अनेक रहस्यों और गरिमामय दृश्यों-बिम्बों से भर जाते हैं। वे पहले चार्ल्स छठे की पुत्री मारिया टेरेसा की इतिहास प्रसिद्ध शांतिवादी और कुशल शासक की कहानी जीते हैं। आगे बढ़ने पर महशूर मुर्तिकार कनोवा द्वारा चित्रित थिसीयस की अद्भुत प्रतिमा के सहारे सारी मिथकीय कहानी कह जाते हैं। और आगे बढ़ने पर रेम्ब्रां की ‘सेल्फ पोर्टेट’ के द्वारा कला की रहस्यात्मकता व्याख्यित करते हैं, इतालवी उस्ताद टीशियन की ‘निम्स एवं शैपर्ड’ पेंटिग्स के मार्फत कलाकृतियों के आन्तरिक पाठों का जिक्र करते हैं, ब्रगेल की कृति ‘टावर ऑफ बेबल’ के रास्ते ईश्वरीय सत्ता को दी जाने वाली इंसानी चुनौतियों की नैतिक-मनोवैज्ञानिक टोह लेते हैं। इस प्रकार ओमा शर्मा की लेखनी में ढलकर साहित्य और कला को समर्पित ये संग्राहलय हम जैसे घर बैठे अनेक पाठकों के लिए भी सजीव हो उठते हैं।

ओमा शर्मा बर्गथिएटर के इतिहास के मार्फत स्वाइग की प्रारंभिक साहित्यिक दिलचस्पी और इस थिएटर की तात्कालिक लोकप्रियता व्याख्यित करते हैं। इसी बीच स्वाइग के इस थिएटर से जुड़े प्रसंग भी सजीव हो उठते हैं। इसी यात्रा विवरण में स्वाइग के भारत-भ्रमण की यादें भी हैं। स्वाइग के सहारे ही फ्रायड, काफ्का, नीत्शे, दोस्ताएवस्की जैसे विश्वप्रसिद्ध लेखकों के अनेक प्रसंग भी इन यात्राओं से जुड़े हैं और दूसरे विश्व-युद्ध के राजनीतिक षड्यंत्र के त्रियक प्रसंग भी उजागर हुए हैं। स्वाइग जैसे शांतिवादी लेखक की अपने समकालीन शांतिवादी लेखकों के प्रति जानकारी भी इन यात्राओं में वर्णित की गई हैं। समग्र रूप में वियना की इस यात्रा के संदर्भ में यह अवश्य कहा जा सकता है कि यह जहाँ एक ओर स्वाइग के चरित्र की यात्रा है, वहीं उनकी धरा से जुड़ी सांस्कृतिक धरोहर को परखने और एक मुसाफिर के रूप में उसमें भटकर समय-समाज के लिए कुछ व्यवस्थित निकाल लेने की भी यात्रा है।

यात्रा-विवरण ‘असम : जादू-टोनों के देश की कतरनें’ हमें असम के उस भूभाग से वाकिफ़ कराता है, जिसे राजनीतिक-शास्त्र या भूगोल की किसी किताब में आज तक दाखिल नहीं किया गया है। ओमा शर्मा ने मेघालय और बांग्लादेश की सीमा से सटे इस क्षेत्र की मुश्लिम आबादी के आंतरिक दुख-दर्द को अपनी झोली में बटोरा है। दो देशों की सीमाओं के बीच में पसरी जाले नुमा फैन्सिंग के आर-पार रहते एक ही मजहब, जुबान और संस्कृति के लोग अपनी बेबसी के साथ क्योंकर जीते हैं, यह शर्मा की नज़रों ने बखूबी पकड़ा है। विभिन्न चौकसी-पाबंदियों के बावजूद अवैध सामान और गो-मांस की तस्करी भी ओमा ने महसूस की है। वे लिखते हैं, “एक अनुमान के मुताबिक नदी या सीमा के रास्ते से हर साल तकरीबन एक लाख गायों को तस्करी के जरिये बांग्लादेश पहुँचा दिया जाता है। कभी-कभार असम पुलिस या बीएसएफ किसी की धरपकड़ भी कर लेती है–कागज़ों पर अपनी उपस्थिति दिखाने भर के लिए जैसे मुंबई के हाटलों में यदा-कदा वेश्यावृत्ति के खिलाफ़ छापे मारने का उपक्रम होता है। ‘इस धंधे को बंद करना मुश्किल है’, बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकारोक्ति की। जिस खेल में दोनों पक्षों के हितों में संलग्नता समा चुकी हो, उसे कानूनन रोकना नामुमकिन है।”

इसी यात्रा के दौरान शर्मा सब इस्पेक्टर तरुण दास के बहाने इन क्षेत्रों में काम करने वाले सिपाहियों के ऊपर निरंतर मंडराने वाले खतरे और उनकी तंगहाली को भी सामने लाते हैं। ब्रह्मपुत्र नदी के भीतर स्वतः बने द्वीपों में रहने के लिए अभिशप्त परिवारों की दर्दनाक दास्तान् और भारतीय राजनीति का बड़ा जुमला बांग्लादेशी पलायन भी इस यात्रा के बरास्ते समझा जा सकता है। ओमा शर्मा बताते हैं कि मुश्लिम बाहुल क्षेत्र होने के कारण कब किसे विदेशी ठहरा दिया जाए, इसके तोड़ के लिए यहाँ के लोग वोट का हर संभव प्रयोग करते हैं ताकि समय आने पर इसी के सहारे यहाँ की नागरीयता को साबित किया जा सके। शर्मा जब इन चरों की भीतरी यात्रा पर निकलते हैं, तो यहाँ के घरों और विशेषतः विद्यालयों की दयनीयता और इनमें नियुक्त अध्यापकों की गैर-मौजूदी भी दर्ज करते चलते हैं। ओमा शर्मा उस दंत कथा, जिसमें किसी डॉक्टर द्वारा यहाँ के न्यायधीश को ताउम्र बच्चे पैदा न कर सकने की शक्ति से युक्त बताने पर उसने अपनी पत्नी और तीन बेटियों की हत्या कर दी गई थी, को भी उजागर करते हैं और जंगलों में धर्म की आड़ में धीरे-धीरे पाँव पसार रहे आतंक और लूट को भी सामने लाते हैं। कुल मिला कर यह यात्रा-वृत्तांत हमें हमारी सरजमीं के भीतर पसरे और लगातार बढ़ते कुचक्र को खुली आँखों से देखने और उसके संबंध में एक ठोस निर्णय लेने के लिए तैयार करता है।

यात्रा-वृत्तांत ‘गाँव : पुनर्यात्रा के झरोखे में’ शर्मा के अपने निजी गाँव की यात्रा के आंतरिक संवेदों से लबालब भरा है। मुम्बई की चकाचौंध और आधुनिकता से निकलकर उत्तरप्रदेश के एक गाँव की यात्रा पर निकलने किसी भी सामाजिक को किरकिराने वाली तमाम चीज़ें इसमें प्रसंगानुरूप आई हैं। गाँवों के साथ विकास के नाम पर की गई अनेदखी, बेरोजगारी और शिक्षा के प्रति घटते रूझान जैसे कई विषय इसमें भीतर-ही-भीतर सांस लेते देखे जा सकते हैं। इस यात्रा के रास्ते शर्मा गाँव की उन यादों को ताजा करते हैं, जहाँ बावड़ियाँ, वृक्ष और कच्ची मिट्टी के पुराने घर अब कहीं लुप्त हो गए हैं। शिक्षा का जिक्र करते हुए शर्मा इसके साथ किए गए प्रयोगों के दुष्परिणामों को आलोचित करते हैं। एक समय जहाँ किसी विद्यार्थी का प्रथम क्षेणी में पास होना स्वप्न था, आज वहीं विद्यार्थी बिना स्कूल जाए पास हो रहे हैं। यह शर्मा को राजनीतिक षड्यंत्र का वह काला सच लगता है, जो लोगों को भीड़ में तब्दील कर रहा है। गाँव में जातिगत वैमनस्य के बदलते संदर्भ और प्रसंग भी शर्मा ने अपनी इस यात्रा के बरास्ते चिह्ने हैं।

‘एक मृत्यु का साक्ष्य’ इन सारी यात्राओं के बीच की वह कड़ी है, जो संवेदनाओं के मनोवेगों से भरे हुए जीवन और मृत्यु के बीच की उन तमाम कड़ियों को जोड़े हुए हैं, जिसका एक दिन छटकना निश्चित है। रमेश मोदी नामक एक पारिवारिक मित्र के बेटे यश का पहले कैंसर और फिर फेफड़ों की बिमारी के कारण लगातार कमजोर पड़ते जाना और एक मजबूर माता-पिता का निरंतर आस्थाओं की ओर मुड़ना, जीवन के संबंध में किए जाने वाले कर्मों की नैतिकता-अनैतिकता के तमाम प्रसंगों को मुख्य भूमिका में खींच लाता है। ओमा लिखते हैं, “कैंसर जैसा रोग मुकाबिल हो तो हमारी आस्थाएं जितनी टूटती हैं, उससे ज्यादा बनती भी हैं। क्या यह अवैज्ञानिकता है? नहीं, अंधविश्वास या अवैज्ञानिकता नहीं है। हर आस्था तर्क से नहीं जरूरत से बनती है। हर तर्क समय सापेक्ष होता है। कोई-कोई समय कितना दूभर और फिसलन भरा होता है।” यहाँ आकर शर्मा समाज की ऐसी दिनचर्या के प्रति हतप्रभ हैं, जहाँ कहीं एक घर के अंदर खुशियों का जनाजा उठ रहा है और दूसरी ओर तमाम लोग अपनी रोजमर्रा में उलझे हए पूर्ववत् जी रहे हैं।

यात्रा-वृत्तांत ‘स्विट्ज़रलैंड : सभ्यतागत निकष का साक्ष्य’ हमें स्विट्ड़रलैंड की दुनिया में विचरने और सांस लेने की मीठी मिसरी-से रस में घोल देता है। जिनेवा की ज़मीन पर प्रकृति के अपार सौंदर्य, मोंत्रो की सुंदर झीलों के अलौकिक बिंबों और स्विस रेलवे के आलिसान दृश्यों से इत्तर भी यह वृत्तांत साहित्य-संस्कृति और यहाँ के लोगों की अपार निष्ठा से भरे दृश्यों को सामने लाता है। रॉक संगीत के चर्चित स्टार फ्रेडी मर्करी की मीठी यादें भी इसी वृत्तांत की हिस्सा बनी हैं। स्विस घड़ियाँ, माऊस आदि के साथ-साथ यहाँ की राजनीतिक गतिविधियाँ, विविध निर्णयों को लेने की प्रक्रिया एवं बैंकिक सुविधाओं की लब्द्धप्रतिष्ठा भी शर्मा ने अपनी इस यात्रा के माध्यम से बयां की हैं।

यात्रा वृत्तांत ‘गुजरात में भूकंप : सदमें से गुजरते हुए कुछ नोट्स’, हमें जनवरी 2000 के उन भूकपों की आँखों-देखी घटनाओं से रूबरू कराता है, जहाँ हजारों की संख्या में लोग मारे गए, बेघर हुए और अनेक लोगों के लिए दर-दर भटकने की नौबत आन खड़ी हुई। अहमदाबाद, भुज, गांधीनगर, सूरत, सुरेन्द्रनगर आदि अनेक जगहों पर केवल एक झटके से तबाह हुई जिन्दगियों की शिनाख़्त यह वृत्तांत बखूबी करता है। ओमा समस्त संदर्भों पर विचार कर यह पाते हैं कि इसके पीछे विभिन्न मल्टीप्लैक्स और रियल स्टेट में मुनाफे की संस्कृति का उपजना अपना महत्त्वपूर्ण रोल अदा कर रहा था। इसके कारण जहाँ व्यापारियों ने अधिक लाभ हेतु ऊँची-ऊँची इमारतें बनायीं, वहीं प्रतिस्पर्धा के कारण छतों पर स्विमिंगपुल तक बना दिए गए, जिसके कारण इतना विनाश हुआ। शर्मा इन्हीं हादसों की जाँच करते हुए देखते हैं कि इस समय बनी स्थिति में राहत-सुविधाओं के जरिये भी राजनेता अपनी वोट तैयार करने में लगे हुए थे और झण्डों की छाया तले सुविधाएँ मुहैया कराने में जुटे थे। शर्मा इस वृत्तांत के सहारे एक ओर जहाँ दर्द की आंतरिक जाँच पर जुटे हैं, वहीं दूसरी ओर इसे लेकर हो रही अमानुषी राजनीति पर लोक-मत को विश्वासना चाहते हैं।

विवरण ‘आत्मचित्रण और टॉलस्टॉय के बहाने स्वाइग : एक निरीक्षण’ एक रचनाकार की अन्तःवेदनाओं को दूसरे रचनाकार द्वारा समझने और उनकी गहरी पड़ताल करने की कोशिश कही जा सकती है। स्वाइग द्वारा टॉलस्टॉय के जीवन को– पसंद, पौरष और प्रतिपक्ष, कलाकार, आत्म-शब्दचित्रण, संकट और बदलाव, सिद्धांत, सिद्धि और संघर्ष, टॉलस्टॉय के जीवन का एक दिन, संकल्प और मुक्ति, भगवान की तरफ पखेरू, रूपी नौ हिस्सों में बाँटकर साथ-साथ जीना, एक रचनाकार की रचनात्मक तहों में उतरने की राह कही जा सकती है। इस विवरण के भीतर स्वाइग और टॉलस्टॉय इस तरह घुलमिल कर सामने आए हैं कि वे आगामी जीवनी लेखकों के लिए एक सीख हो सकते हैं। ओमा शर्मा का मानना है कि स्वाइग ने टॉलस्टॉय के लेखन की अंदरूनी तहें पहचानी हैं और उनकी वैश्विक ख्याति के कारणों को बखूबी समझा है। उन्होंने उनके चहरे-मोहरे की बाह्य पड़ताल से लेकर आंतरिक उधेड़-बुन तक की यात्रा की है, जो शायद ही उनके संबंध में पहले कभी किया गया हो। यह लेख मुख्य रूप से टॉलस्टॉय के बहाने स्वाइग की रचनात्कता को सामने लाता है।

निष्कर्षतः इस यात्रा-वृत्तांत के संर्दभ में यह कहा जा सकता है कि इसमें उन हिस्सों की कथा कही गई है, जिन्हें बाज लोग अपने सेर-सपाटे का हिस्सा तो बनाते रहे हैं किन्तु वहाँ की धरोहरों की सांस्कृतिक धड़कनों से बावस्ता होने से बचे रहे हैं। ओमा ने उन जगहों को पहले पहचाना है और फिर उन्हें साहित्यिक संदर्भों के मार्फत जिया भी है। यह पाठकों की अपने आसपास को देखने की नज़र में वृद्धि तो करता ही है, साथ ही उसको बयां करने की मिसरीनुमा भाषा भी सिखाता है। इस पुस्तक के सहारे ओमा शर्मा भाषा और लोक को देखने की समृद्धि बखूबी विकसित कर पाये हैं और यही इस पुस्तक की बड़ी विशेषता रही है।

शर्मा, ओमा, अन्तरयात्राएं : वाया वियना, पंचकूला : आधार प्रकाशन, 2017

Posted in Reviews of my books
Twitter • Facebook • Delicious • StumbleUpon • E-mail
Similar posts
  • संवेदन आवेग का अनुवाद : स्टीफन स्वाइग...
  • देश-विदेश की कतरनें मार्फत ‘अन्तरयात्...
  • रचनाकार और उसका अंतर्जगत
  • से. रा. यात्री (पल-प्रतिपल, जून-सितम्...
  • सुधीश पचौरी (अहा! जिंदगी, मार्च, 2005...
←
→

No Comments Yet

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



Oma sharma, born 1963, is a noted Hindi writer. He has published eight books that include three collections of short stories, namely ‘ Bhavishyadrista’(भविष्यदृष्टा ), ‘Karobaar’(कारोबार) and Dushman Memna(दुश्मन मेमना). Besides, he is widely known in India for re-igniting the interest of all and sundry in the works of noted Austrian legend Stefan Zweig. He has translated the autobiography of Stefan Zweig `The world of yesterday` in Hindi titled ‘Vo Gujra Zamaana’(वो गुजरा जमाना ) as also selected stories of the master in his स्टीफन स्वाइग की कालजयी कहानियाँ(Classic stories of Stefan Zweig) . Adab Se Muthbhed, (अदब से मुठभेड़) his book by way of literary encounters with Legends like Rajendra yadav, Mannoo Bhandari, Priyamvad, Shiv murti and M F Husain has been hugely appreciated for its critical probing.

He has published his travel diaries titled ‘Antaryatrayen :Via Vienna’( अन्तरयात्राएं: वाया वियना ) which records a long, never before attempted kind of essay about Stefan Zweig, Vienna and the cultural aspect of Austria. He is recipient of the prestigious Vijay Verma Katha Sammaan (2006), Spandan Award(2012) and Ramakant Smriti Award(2012) for his short stories.

संपर्क: A-1205, Hubtown Sunstone, Opp MIG cricket club, Bandra east. Mumbai 400051
ईमेल: omasharma40[at]gmail[dot]com

Books On Amazon

अन्तरयात्राएं वाया वियना 20160516_145032-1 अदब से मुठभेड़

Recent Posts

  • अहमदाबाद दूरदर्शन(डीडी-गिरनार) के कार्यक्रम ‘अनुभूति’ लिए विनीता कुमार की ओमा शर्मा से बातचीत:
  • पत्रों में निर्मल
  • कथाकार ओमा शर्मा से युवा आलोचक अंकित नरवाल के कुछ सवाल
  • संवेदन आवेग का अनुवाद : स्टीफन स्वाइग की कहानियां
  • देश-विदेश की कतरनें मार्फत ‘अन्तरयात्राएं : वाया वियना’

Pure Line theme by Theme4Press  •  Powered by WordPress Oma Sharma's Blog