अभी अभी ओमा शर्मा की पुस्तक ‘अन्तर्यात्राएं:वाया वियना’ पढ़कर समाप्त की है और यह कहना नाकाफी होगा कि अविभूत हूँ।मेरे जानते हिंदी ऐसी शायद ही कोई दूसरी पुस्तक हो।अपने प्रिय लेखक स्टीफन स्वाइग के संसार से ओमा शर्मा वर्षों से जुडे हुए है और उन्होंने स्वाइग की अनेक कालजयी कृतियों का हिंदी में अनुवाद भी किया है पर अपने किसी प्रिय लेखक की दुनिया,उसके समय,उसके परिवेश,उसकी परिस्थितियों, उसके गली-मोहल्लों,उसके स्मृति-चिह्नों ,उसके अवशेषों ,उसकी किवन्दतियों और अनुश्रुतियों में इस कदर दीवानगी और समर्पण के साथ भटकना और उनमें डूबना-इसे एक रूहानी पैशन ही तो कहा जायेगा। वर्षो तक किसी धुन में रमे रहने की यह निराली क्षमता।स्टीफन स्वाइग की विस्मृत दुनिया के अंत:सूत्रों को खोजने के लिए उन्होंने विशेष रुप से वियना और साल्जबर्ग की यात्राएं की।और यह पुस्तक पढ़ने वाले को कई अर्थों में सृजन के एक उच्चतर और विराट धरातल पर ले जाती है।दो महायुद्धों के बीच इतिहास का एक विशेष काल -खण्ड, जगहें,व्यक्ति,घटनाएं ,परिवेश,चीजों का बहिरंग -यह सब जैसे ओमा शर्मा के लेखक के भीतर जज्ब हो गया है,उनके अंत:जगत से एकमेव हो गया है।खोजने की यह धुन,भटकने का यह पागलपन,वैचारिकता की यह उठान,उत्फुल्लता के ये मनोभाव,त्रासद की यह गवाही,बहिरंग और मन की आँखों का यह सम्मिलन ,यह औचक उद्घाटन,यह सहजता,यह सादगी,यह निरायसता,रोमान के साथ साथ यह धीरज,ठहराव और विश्लेषण की सजगता – ओमा शर्मा ने न जाने कितनी बातें एक साथ अपने भीतर साध ली हैं। हां, यह यात्रा एक पराये परिवेश में जितनी भूदृश्यों ,इमारतों,कोनो,गली ,मोहल्लों को जानने की है ,उतनी ही अपने रेस्पांसों और अपनी अन्तरयात्राओं की भी है।ओमा जी बहुत बहुत धन्यवाद।
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