अरे भाई,एक किताब मैंने पढ़ी अभी- ओमा शर्मा की’अन्तरयात्राएं वाया वियना’.गजब की जादुई पकड़ वाली किताब है.शुरू करिए तो बिना पूरी पढ़े रह नहीं सकते.दिल्ली पुस्तक मेले में घूमते हुए आधार प्रकाशन से यों ही ख़रीद लिया.यह तो पढ़ने पर पता चला कि कितनी नायाब चीज़ हाथ लग गयी.आस्ट्रियाई यहूदी लेखक स्टीफ़न स्वाइग ओमा शर्मा के पसन्दीदा लेखक हैं.ओमा के शब्दों में नायक लेखक. ओमा ने स्वाइग की आत्मकथा का ‘वो गुज़रा जमाना’ नाम से अनुवाद भी किया है.अन्तरयात्राएं में उन्होंने स्वाइग से सम्बन्धित स्थलों और स्मारकों को खोजने के क्रम में की गयी आस्ट्रिया और ख़ास कर वियना की यात्रा के खट्टे मीठे अनुभवों तथा उससे प्राप्त निष्पत्तियों को लिपिबद्ध किया है। ऐसा करते हुए वे पाठक को ऐसी अनूठी जानकारियों का ख़ज़ाना थमाते हैं कि मेरे जैसा इतिहास का अल्पज्ञ पाठक अचम्भित रह जाता है. स्वाइग के एक घर का वर्णन करते हुए ओमा लिखते हैं-एक तरफ़ से हेमिंग्वे चले आ रहे हैं.एक कोने में पिकासो को कोई उनकी हालिया पेंटिंग के नुक़्स बता रहा है.कहीं रोंदा की प्रेमिका पर जिरह हो रही है.कहीं सल्वाडोर डाली उसका पोर्ट्रेट बनाने का न्योता दे रहा है.कहीं बुएनन मयखाने की ओर बढ़े जा रहे हैं…..
इस किताब को पढ़ कर मुझे पता चला कि 1907 में बालक हिटलर ललित कला अकादमी में एडमिशन के लिए वियना आया था.उसने दो बार कोशिश की और दोनों बार असफल रहा.फिर भी वियना में रुक कर वह पॉच वर्ष तक चित्रकारी सीखने की कोशिश करता रहा और कई रातें फ़ुटपाथ पर भूखे सो कर गुज़ारी .सोचिए कि अगर हिटलर का एडमिशन ललित कला में हो जाता तो योरप का इतिहास कितना बदला हुआ होता.ऐसी दर्जनों रोमांचित करने वाली जानकारियॉ इस किताब में दर्ज हैं जिन्हें पढ़ कर आप ख़ुद को अंदर से भरा पूरा महसूस करने लगते हैं.इतना ही नहीं ,इस किताब में ओमा शर्मा की खोजी नज़र से देखे गये असम,गुजरात ,स्विट्ज़रलैंड और अपने गॉव के अनूठे वृतान्त भी दर्ज हैं.सचमुच एक ज़रूर पढ़ी जाने वाली किताब.इस पर फिर कहीं विस्तार से लिखना ज़रूरी है.
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