विनीता कुमार: नमस्कार। दर्शकों दूरदर्शन के आपके प्रिय हिन्दी कार्यक्रम ‘अनुभूति’ में मैं विनीता कुमार आपका स्वागत करती हूं। दर्शकों जैसा कि आप जानते हैं ‘अनुभूति’ कार्यक्रम में हम हर एपिसोड में हिन्दी के जाने-माने रचनाकार से आपका परिचय करवाते हैं और उनके साहित्य और उनके जीवन पर बातें होती है। इसी कड़ी में आज हमारे साथ स्टूडियो में उपस्थित है हिन्दी के वरिष्ठ रचनाकार श्री ओमा शर्मा जी
ओमा जी आपका बहुत-बहुत स्वागत है। श्री ओमा शर्मा का जन्म 11 जनवरी 1963 को उत्तर प्रदेश के दीघी नामक गांव में हुआ था जो कि बुलंदशहर में स्थित है। इन दिनों वे अहमदाबाद में भारत सरकार को अपने सेवा देने में कार्यरत हैं। ओमा जी की साहित्य में, हिन्दी लेखन में अभिरुचि है और अलग अलग विधाओं में उनकी कई किताबें प्रकाशित हैं। आज हम उनसे बात करते हैं उनके जीवन और उनकी साहित्यिक यात्रा के बारे में। सर, आप हमें यह बताइए कि आपका कार्यक्षेत्र हिन्दी साहित्य से बिल्कुल अलग है तो यह दोनों बिल्कुल अलग विषयक चीजें हैं तो आपको हिन्दी साहित्य में अभिरुचि किस प्रकार जगी और कैसे आपने हिन्दी लेखन की शुरुआत की ?
ओमा शर्मा : शुक्रिया विनीता जी। यह बहुत सहज होता है जब आप एक हिन्दी भाषी इलाके में रहते हैं। मेरे साथ एक संयोग यह भी था मेरे घर मैं एक पूरा साहित्यिक माहौल था; मेरे बड़े भाई स्वयं एक लेखक हैं तो पत्र पत्रिकाएं और साहित्यिक किताबें ही नहीं बल्कि लेखकों का घर पर आना-जाना होता था। मैं तो पहले मुख्यतः विज्ञान का और बाद में अर्थशास्त्र का विद्यार्थी रहा लेकिन जब घर में इस तरह के माहौल में रहते हैं तो दूसरी चीजें को भी उलट-पुलट कर देखने लगते हैं। धीरे-धीरे मुझे यह भी लगने लगा कि बड़ी दिलचस्प दुनिया है। पहले तो मैं पढ़ता ही था फिर धीरे-धीरे लगा कि जो मैं पढ़ रहा हूं शायद उसकी तरह लिखने की कुछ आजमाइश मैं अपनी भी कर सकता हूं । तो धीरे-धीरे ऐसे हुआ और वह सिलसिला चलने लगा ।
विनीता कुमार: जी। ऐसे हमेशा होता है कि हम अपने घर में जिस तरह का माहौल देखते हैं, उसका कहीं न कहीं उसका असर हमारे व्यक्तित्व पर जरूर पड़ता है और यही आपके साथ भी हुआ, यह जानकर हर्ष हुआ । अब हमें यह बताइए कि आप हिन्दी साहित्य के किन-किन विधाओं में लेखन करना पसंद करते हैं और किन-किन विधाओं में आपकी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है ?
ओमा शर्मा : मेरी विधा तो कहानी है। मुझे कहानी लिखने में, कहानी पढ़ने में कहानी में या उसपर बात करना अच्छा लगता है क्योंकि कहानी एक ऐसी विधा है जो जीवन की सारी चीजों को बहुत गहराई से अपने में समेटे रहती है। मानवीय मूल्यों की तलाश -तराश और उनसे जुड़े बहुत सारे मसलों को लेकर जो एक पूरी परंपरा देश और विदेश की बनी हुई है, कहानी की विधा में बहुत कलात्मक ढंग से लक्षित होती है। मुझे यह बहुत आकर्षक लगता है हालांकि मेरी शुरुआत कविताओं से ही हुई थी। अलबत्ता, उपन्यास भी मैं बहुत रुचि से पढ़ता हूं। लेकिन मेरी कोशिश यह होती है कि उपन्यास में कही गई बात काश हम एक संक्षिप्त रूप में कहानी में समेट दें तो कितना अच्छा हो! शायद पाठक का भी समय बचे और जो बात है वह भी कह दी जाए।
विनीता कुमार: कहानियों के अलावा और किन-किन विधाओं में लिखते हैं ?
ओमा शर्मा : कुछ समय कहानियां लिखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि हर चीज कहानी के जरिए संप्रेषित नहीं हो पाती है। ऐसा करने चलें तो कहानी की बात नहीं बनती है। तब मैंने ‘जनसत्ता’ में कॉलम लिखना शुरू किया ‘दुनिया मेरे आगे’ नाम से, जो उसका बहुत प्रसिद्ध कॉलम है। इसी तरह जो हमारे बड़े लेखक कलाकार थे, उनके साथ बातें करना मुझे बड़ा अच्छा लगता था, तो धीरे-धीरे यह हुआ कि मेरी एक किताब- अदब से मुठभेड़- नाम से प्रकाशित हुई। इसमें बहुत जाने-माने लेखक जैसे – मन्नू भंडारी, राजेंद्र यादव, मकबूल फिदा हुसैन, प्रियंवद, शिवमूर्ति जैसे शामिल हुए। इसी तरह से मेरी एक इच्छा थी कि अपने प्रिय लेखक—स्टीफन स्वाइग– के ठीयों-ठिकानों को देखूँ जहां वह रहता था, जिस आबो-हवा में सांस लेता था। उसको लेकर फिर मैंने एक यात्रा-डायरी लिखी जिसका नाम ‘अन्तरयात्राएं: वाया वियना’ है। वियना के अलावा मैं साल्सबर्ग भी गया और उन चीजों को महसूस करने की कोशिश की जहां करीब सौ वर्ष पहले वह लेखक रहता था, जहां वे तमाम किताबें लिखी गई जिनका अपना एक कालातीत महत्व है। इसके अलावा –उसी से जुड़ा सवाल जो अगर इसी का उत्तर दें– तो मैंने कुछ अनुवाद किए हैं। लेकिन वह मेरी बहुत निजी पसंद के आधार पर हैं। मैं जिस प्रिय लेखक की बात कर रहा था उसके ठीयों-ठिकानों को देखने गया था, उसकी आत्मकथा का मैंने अनुवाद किया है, ‘वो गुजरा जमाना’ के नाम से। अलावा इसके उसकी कुछ कहानियां हैं जिन्हें आज यानी लेखे जाने के सौ साल के बाद भी आप पढ़ें तो लगता है जैसे आज ही की लिखी कहानी है। उस पर एक किताब ‘स्टीफन स्वाइग: कालजयी कहानियाँ’ की। तो इस तरह से मुख्यतः कहानी है, फिर कुछ अनुवाद और थोड़ा कुछ दूसरी विधाओं में लिखा है।
विनीता कुमार: दर्शकों आपको जानकर हर्ष होगा कि श्री ओमा शर्मा जी को राष्ट्रीय स्तर के पांच पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। आइए, हम इनकी कहानियों के बारे में बाट करते हैं क्योंकि उन्होंने कहा कि उनकी जो मुख्य विधा कहानी है। हम यह जानना चाहेंगे कि आपकी जो कहानियां होती हैं ,वे मुख्यतः किन विषयों पर होती हैं? क्या सामाजिक होती हैं? या कुछ कई लेखक हैं जो मनोविज्ञान पर भी कहानियां लिखते हैं। तो आप की कहानियां किस तरह का संदेश देती हैं और किन विषयों के इर्द-गिर्द होती हैं?
ओमा शर्मा : देखिए किसी लेखक से यह पूछना कि उसकी कहानियां किस विषय पर केंद्रित होती हैं, इसे बताना उसके लिए बड़ा मुश्किल सवाल हो जाता है । कहानी दरअसल किसी बने बनाए सींखचे में नहीं लिखी जाती है। उसमें कुछ सामाजिक तत्व होंगे, उसमें निश्चित रूप से कुछ मनोवैज्ञानिक तत्व रहेंगे। लेकिन उससे भी अधिक वह एक लेखक की निजता के तत्वों को लेकर होती है। तो हम किसी इस या उस तरह की कहानियां नहीं जो आप वक्त-काटू पत्रिकाओं में पढ़ते हैं या जिनसे हम अभी तक अवगत रहे हैं। हिन्दी कहानी या साहित्य की जो विधा कहानी है, वह बहुत दिलचस्प और कलात्मक विधा है। उसमें बहुत सारे पहलू एक साथ चलते हैं और हमारी कोशिश होती है उन अनछुए पहलुओं को तलाश करना जिससे हम मानव मन की कुछ जगहों तक पहुंच सकें। कुछ अपने समय, अपने समाज को समझने की कुछ चीजों की आजमाइश कर सकें, उन पर हम शायद कुछ रोशनी डाल सकें। इसी पर हम बार-बार कहानी लिखते हैं। कहानी लिखने के बाद लगता है कि कुछ चीजें छूट गई हैं तो हम दूसरी कहानियां लिखते हैं। जैसे महानगरीय जीवन को आप लें तो उसके इतने आयाम हैं, उसकी इतनी परतें हैं… एक तरफ बहुत सारी बड़ी-बड़ी इमारतें और अट्टालिका चमक रही हैं तो साथ में उसका विरोधाभास भी दिख रहा है, गरीबी भी दिखेगी। दूसरी चीजें भी चलती जाएंगी। सारी चीजों को एक कहानी में नहीं पकड़ सकते। फिर उन्हीं के साथ जो मानवीय स्थितियां है, अर्बन लाइफ के अंतर्विरोध हैं, उसकी व्याप्तियां-व्याधियाँ हैं… उन सब को पकड़ने की कोशिश में नई कहानी लिखी जाती है।
विनीता कुमार: एक कहानी में अलग-अलग विषयों नहीं को समेटा जा सकता, यह बात सही है। लेकिन हम यह जरूर जानना चाहेंगे ,जैसा आपने कहा, कि कुछ विषय हैं जो अछूते छूट जाते हैं तो हम उन्हें फिर से किसी नई कहानी में लेते हैं। सर, आप हमें यह बताइए कि कुछ ऐसे विषय हैं जो हैं जो अभी तक आपने अपनी कहानियों में लिए नहीं हैं? और आपकी बड़ी इच्छा होती है कि इस विषय पर मैं एक उम्दा कहानी लिखूं ?
ओमा शर्मा : देखिए यह तो और भी मुश्किल सवाल आपने किया। कहानी विषयवार न तो सोची जाती है और ना लिखी जा सक्कटी है। फिर भी। जैसे इस दौर के बच्चों की मानसिकता को पकड़ना मेरे लिए मुश्किल रहा है क्योंकि मैं अब उस उम्र का बच्चा नहीं रहा। नई संचार क्रांति के तले बच्चे कैसे सोचते हैं? क्या चल रहा होता है उनके मन में? उनकी क्या समस्याएं हैं? हम उनसे दूर चले जाते हैं। मैं उनके स्तर पर उतर कर उनकी व्याकरण में कुछ लिखना चाहता था तो उसके लिए ‘दुश्मन मेमना’ लिखी। उसमें मैं एक टीनएज लड़की की व्यथा को पकड़ना चाह रहा था और यह भी कि तकनीकी हमारे पारिवारिक अंतर-संबंधों को परिभाषित ही नहीं, निर्धारित भी कैसे करने लगी है। इसी तरह से पिछले दिनों मुझे ऐसा लगा कि हमारे यहां बूढ़ों की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ती जा रही है। और वह जैसे एक सामाजिक दायरे में बिल्कुल हाशिये पर जा रहे हैं क्योंकि पारिवारिक जीवन जो है उसमें इतनी व्यस्ताएं हैं; बच्चे उनके मां बाप को समय नहीं दे पा रहे हैं। उनके अकेलेपन की व्यथा, और उनके साथ कभी तो अभद्र आचरण भी होता है। यहां मैं किसी को दोषी करार नहीं दे रहा हूँ लेकिन हम जिस समय में जी रहे हैं, यह शायद उसी की एक अनिवार्यता है। पहले गांव-देहात में होता था कि हमारे बड़े बूढ़ों की भूमिका हो जाती थी। एक बेटा कमाने जा रहा है, बच्चे स्कूल जा रहे हैं, ग्रहणी घर का संभाल रही है। अब वे सारे संबंध जैसे बिल्कुल विश्रंखललित हो गए हैं। यहां पर अब बच्चा भी कुछ दूसरा काम करने लगा है। पिता यानी जो घर का मालिक है उसकी नौकरी छूटने लगी है और उसके अपनी पत्नी के साथ संबंधों में एक निश्चित कड़वाहट आने लगी है …तो जो पिता अभी तक साथ में रहता था, आज उसके लिए कोई स्पेस नहीं रह गया है। जिन परिवारों में ऐसा नहीं है तो लगता है बहुत बड़ी उपलब्धि है। इन सारी चीजों के जो पारिवारिक आयाम निकल कर आ रहे हैं। इसको भी देखे जाने की जरूरत लगती है। मतलब एक लेखक के तौर पर हम देखें कि जो एक नया वातावरण बुनकर आ रहा है, उसमें हमारे निजी पारिवारिक संबंधों की चीजों का क्या हश्र हो रहा है। उसको मैंने पकड़ने की कोशिश की है और अभी एक नई लंबी कहानी उस पर लिखी है। और हर बार लिखने के बाद लगता है जैसे अभी तो बहुत सारा अधूरा छूट गया है। तो फिर नई जुगत शुरू होती है… अलग कहानी लिखने की।
विनीता कुमार: बहुत सही बात कही आपने एक सफल और बहुत अच्छे लेखक की यह पहचान होती है कि वह कितना भी लिखते जाए पर उन्हें यह हमेशा महसूस होता है कि बहुत कुछ छूट रहा है। अभी बहुत कुछ समेटना है हमें। अपने लेखन में दरअसल उन्हें अपने लेखन के जरिए समाज को बहुत अच्छे संदेश देने होते हैं और उन्होंने जैसा बताया कि वय संधि के कगार पर एक बच्ची है, उस पर उन्होंने उसकी मानसिकता को समझते हुए उस पर एक कहानी लिखी ‘दुश्मन मेमना’। वह कहानी मैंने भी पढ़ी है। बहुत ही खूबसूरत कहानी है और हर किसी को वह पढ़नी चाहिए। और बुजुर्गों को लेकर जो कहानी लिखने की सोच रहे हैं, बहुत अच्छा विचार है, मैं आपकी सराहना करती हूं क्योंकि उन पर लिखा जाना, उनको पढ़ा जाना ,उनको सुना जाना बहुत जरूरी है। कहानियों पर चर्चा के बाद मैं चाहूंगी कि आपने अनुवाद जो किए हैं, अपने प्रिय लेखक –स्टीफन स्वाइग- जिनके ठिकानों को देखने आप वियना चले गए थे और उनकी आत्मकथा ‘द वर्ल्ड ऑफ यस्टरडे’ का आपने हिन्दी अनुवाद भी किया जो ‘ वो गुजरा जमाना’ के शीर्षक से प्रकाशित है। तो मैं चाहूंगी कि हमारे दर्शक जरूर जानें कि ये जो स्टीफन स्वाइग लेखक हैं, उन्होंने क्या लिखा है, किस तरह का लिखा है और किस प्रकार आप उनके लेखन से इतने प्रभावित हुए कि आप उनका घर भी देखने गए! ऐसी क्या खासियत, ऐसा क्या आकर्षण था उनके लेखन में कि आप उनकी तरफ इतने आकर्षित हुए?
ओमा शर्मा : मैं सोचता हूं कि हम सबके जीवन में संयोगों की बड़ी भूमिका होती है। मैं बहुत पहले जब अहमदाबाद में ही था तब गुजरात विद्यापीठ लाइब्रेरी में मेरे हाथ एक किताब लगी ‘अनजान औरत का खत’। मुझे उसमें दिलचस्पी हुई ऐसा कैसा खत कि पूरी किताब की शक्ल लिए हुए है! मैंने उसे पढ़ना शुरू किया तो दरअसल उसमें तीन कहानियां थीं और लेखक का नाम था स्टीफन स्वाइग। मैं उसे नहीं जानता था और मैंने जब अपने मित्रों से चर्चा की तो वो भी उसको बहुत नहीं जानते लगे। लेकिन हमारे जो पुस्तकालय हैं ,उनकी यही भूमिका होती है। वे दिनों तक और देर तक एक आश्रय देते हैं… साहित्य को, पठनीयता को। तो उस किताब के जरिए मैं उस लेखक की दूसरी चीजें भी पढ़ने लगा। उसी में उसकी आत्मकथा आ गई। मैंने तो नया-नया लिखना शुरु कर रहा था। कुछ ही कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई थीं। लेकिन उस किताब को पढ़कर मुझे लगा कि यह बहुत जरूरी किताब है और इसे हिन्दी में आना चाहिए। बिना किसी अनुभव के मैंने अपने लिए अनुवाद का कार्य चुन लिया। दो-तीन साल तक लगातार मैं (कंप्यूटर की इतनी सुविधा नहीं थी) हाथ से पृष्ठ दर पृष्ठ अनुवाद के लिखता रहा। फिर दूसरे-तीसरे ड्राफ्ट किए और जब मैंने वह कर लिया, और किताब प्रकाशित हुई तो मुझे खुशी हुई कि हिन्दी जगत ने उस किताब का खूब स्वागत किया। दूर-दराज के लोगों ने उसको पढ़ा। कई विद्यार्थियों तक ने उसको बहुत सराहा। मसलन, जहां वह अपने स्कूल के दिनों की याद कर रहा है तो ऐसा लगता है जैसे आज अपनी यूपी या बिहार के किसी गांव के स्कूल की बात की जा रही हो… अध्यापकों के बारे में… पाठ्यक्रम को लेकर… जो संकीर्णता हमारे यहाँ है, वही सब। तो बड़ी रचनाएं हमें इतना ही देती हैं कि वे ना सिर्फ हमें आईना दिखाती हैं बल्कि एक रोशनी का रास्ता भी हमारे लिए खोलती हैं। इसी की मार्फत में मुझे लगा कि यह तो आत्मकथा है, उसकी वास्तविक कला कहां है? वास्तविक कला– वह एक कहानीकार-उपन्यासकार है– तो उसकी वास्तविक कला तो उसकी कहानियों में ही होगी। तो फिर उसके अनुवाद के लिए मैंने कहानी चुनी। स्वाइग का विपुल कथा संसार है। कभी ताज्जुब होता है कि ये लोग इतना श्रेष्ठ लेखन इतनी विपुल मात्रा में कैसे कर सकते हैं? तो जब मैंने इसको किया तो वहां पर एक बहुत कड़क होकर चयन किया जिन पर कोई विवाद ही नहीं हो सकता। मतलब आप एक कहानी पढ़ें और फिर पूरे दिन के लिए जैसे आहत होकर रह जाएँ कि आह! क्या कहानी पढ़ी है। तो इस तरह की कुछ कहानियां सात-आठ कहानियां मैंने चुनीं और उनको एक किताब की शक्ल दी। और मुझे भी अच्छा लग रहा है कि उस किताब को भी भरपूर पढ़ा और सराहा जा रहा है।
विनीता कुमार: बहुत खूबसूरत लग रहा है आपसे बात करके और स्टीफन स्वाइग के बारे में जानने को भी मिल रहा है। स्टीफन स्वाइग के बारे में जितना भी बताया, वह कम लग रहा है। आपसे जानना है कि आप उनके घर गए, अन्तर यात्राएं: वाया वियना आप ने लिख डाला। तो आपने कैसे सोचा कि मुझे यात्रा करनी चाहिए, वहां तक जाना चाहिए? आपका उस समय किस तरह का अनुभव रहा? इस यात्रा के दौरान अनुभवों को हम चाहेंगे कि आप दर्शकों को बताएं ?
ओमा शर्मा : मुझे बहुत खुशी है कि आपने यह सवाल किया। मैं दर्शकों और अपने दूरदर्शन के दर्शकों को भी बताना चाहता हूं कि स्टीफन स्वाइग का जन्म वियना में सन 1881 में हुआ था। वह एक संपन्न यहूदी परिवार से थे और बहुत कम उम्र में कविताओं से लेखन की शुरुआत कर चुके थे। लेकिन धीरे-धीरे वह कहानी की तरफ आए और अपनी चालीस वर्ष की उम्र तक विश्व में इतने मशहूर हो गए थे कि आईएलओ ने उन्हें विश्व का सबसे ज्यादा अनुदित लेखक माना था। वह अपने समय के तमाम दिग्गज लेखक-कलाकार जैसे गोर्की, फ्राइड, रिल्के, रोमा-रोलां के दोस्त थे। खूब यारबाज थे। खूब यात्राएं करते थे। बहुत सारे ऐतिहासिक किरदारों की उन्होंने जबरदस्त जीवनियां लिखी हैं। तो वह ऐसे लेखक थे। लेकिन जब ऑस्ट्रिया और जर्मनी में नाजीवाद का उभार हुआ, यह चूंकि यहूदी थे तो उनको अपना घर छोड़कर भागना पड़ा। यह पहले लंदन भागे और फिर चूंकि लंदन भी खतरे में आ चुका था, तो उसे भी छोड़कर उन्होंने पहले अमेरिका और बाद में ब्राजील की शरण ली। उस परदेश में वे अपनी शोहरत और पराकाष्ठा से गिरे लेखक हो गए थे। इनके पास ढेरों के हिसाब से रोज चिट्टियां आती थीं लेकिन ब्राजील में जाकर वह एक निर्वासित जीवन जी रहे थे। शायद उन्हें कुछ ऐसा लगा कि अब जीवन मेरा व्यर्थ हो गया है। साठ साल की उम्र हो गई है, अब भटकने में, ऊर्जा खत्म हो गई है तो फिर उन्होंने आत्महत्या कर ली। इतिहास के कूड़े में कैसे-कैसे नगीने पड़े होते हैं और हमको पता नहीं होता! आप अपने आसपास के समाज में किसी से बात करें, स्टीफन स्वाइग का नाम लें तो बड़े हैरत से पूछेगा क्या बोला? लेकिन आप उसके कथा साहित्य में जाएं, उसके जीवनी साहित्य में जाएं तब लगेगा कि अरे, यह तो बिल्कुल अद्भुत चीज है। क्या सृजन के स्तर पर यह भी संभव है? इस तरह की अनुभूति बहुत लोगों को होती है। मुझे तो कम से कम हुई। तो मेरी दिलचस्पी थी कि वो माहौल, वो फिजाँ, वो सड़कें, वो दरो-दीवार कैसे रहे होंगे, जहां पर इस तरह के उत्कृष्ट लेखन का सृजन किया गया है। इसके चलते मैंने ऑस्ट्रिया गया। आप देखें कि उस मुल्क में मैं और कहीं पर नहीं गया। मैंने वहाँ कला संग्रहालय जरूर एक दो बार देखे लेकिन वह समय की भरपाई के लिए थे। मैं उनसे सम्बद्ध चीजों को देखना चाह रहा था जिनकी मार्फत उन रचनाओं, उन किताबों और उन किताबों में रची चीजों का सृजन हुआ… मैं समझना चाह रहा था कि पहला विश्व युद्ध हुआ, उसके बाद मंदी आई, नाजीवाद का दौरा या दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया … और इन सबके बीच रहते हुए एक यूरोपीय लेखक इतना निरपेक्ष और इतना सृजनात्मक स्तर पर लिख रहा है… तो यह बहुत मनोवैज्ञानिक और स्वाभाविक दिलचस्पी की बात है। आप देखें कि मैंने कोई यात्रा वृतांत नहीं लिखा, अधिक से अधिक एक डायरी लिखने की कोशिश जिससे मैं उस लेखक की रचनाओं से अपने पाठकों का परिचय करा सकूँ।
विनीता कुमार: आपने बड़ी-बड़ी हस्तियों जो साक्षात्कार लिए हैं, उस पुस्तक के बारे में भी हमें जरूर बताएं ?
ओमा शर्मा : मैं साहित्य का विद्यार्थी नहीं रहा। मैंने जब लिखना शुरू किया और अपने आसपास के लेखकों से मिलता था तो बड़ी स्वाभाविक दिलचस्पी होती थी कि ये लोग होते कैसे हैं, चलते कैसे हैं, बातें कैसे करते हैं? एक बहुत बाल-सुलभ दिलचस्पी थी। बाद मैं जब उनके साथ अक्सर बैठता , उनकी बातें सुनता था तो बहुत सामान्य– जिसे आप बहुत हास्यास्पद बातें कह सकते हैं– लेकिन जब मैं उनकी चीजों से गुजरने लगा तब शायद मुझ में इस तरह की काबिलियत आ गई होगी कि मैं उनसे उनके विचारों, उनके कल्पना लोक में जाकर भी उनसे बात कर सकता हूं! धीरे-धीरे ऐसा हुआ। फिर बात आगे बढ़ती गई।
विनीता कुमार: आज के समय में जैसा कि आप जानते हैं कि जो नई पीढ़ी है उनका हिन्दी साहित्य की ओर रुझान काफी कम हो गया है हिन्दी साहित्य को कम पढ़ा जा रहा है तो ऐसे में आप युवा पीढ़ी को अपनी ओर से क्या संदेश देना चाहते हैं? कि उनका हिन्दी साहित्य की ओर रुझान कैसे बड़े और क्यों जरूरी है साहित्य से लगाव रखना ?
ओमा शर्मा : ये आपने बहुत अच्च्छा सवाल किया। इसमें मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि यह सवाल सिर्फ हिन्दी साहित्य का नहीं है यह हमारी सारी भाषाओं के साहित्य का है, वह चाहे गुजराती हो चाहे मराठी हो या फिर कन्नड़। हमारी सारी भाषाएं संकुचित हो रही हैं। हमारा भाषाई गौरव जैसे हमसे छिन गया है। हम अपने बच्चों से एक ज़िद के तौर पर कहते हैं कि अंग्रेजी में बात करें! कोई भी भाषा अंग्रेजी, फ्रेंच या इतालवी बुरी नहीं है। हमें अधिक से अधिक भाषाओं का ज्ञान हो तो यह और भी बेहतर है। यह हमारे मन की और खिड़कियां खोलता है। लेकिन हमें अपनी भाषाओं पर आत्म-गौरव भी होना चाहिए क्योंकि भाषा सिर्फ साहित्य का मामला नहीं है; भाषा हमारी संस्कृति का भी वाहक होती है ।
विनीता कुमार: बहुत ही अच्छा और रोचक रहा आपसे बातें करना। बहुत अच्छी बातों की आपने जानकारी दी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद है कि आप स्टूडियो में आए और साहित्य पर इतनी अच्छी चर्चा की ।
ओमा शर्मा : मुझे खुशी हुई।
( प्रसारण तिथि: 21 नवंबर 2019 , सुबह 11.30 )
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