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हमारे शक्तिमान

May 08, 2016 ~ Leave a Comment ~ Written by Oma Sharma

सत्ता अपने में जितनी भी घिनौनी और क्रूर हो, आमजन के बीच फिर भी स्पृहणीय ईर्ष्या भाव जगाती है। ‘’हमारी घृणाएं हमारी प्रछन्न कामनाएं होती हैं’’ इस मनोविज्ञानी निष्कर्ष को जेहन में रख लें तो बहुत सारी धुन्ध खुद-ब-खुद छंटने लगती है। उधर हर कला के उत्स में अपने बहाव और बदलाव के अन्दरूनी तर्कों के अलावा हर सत्ता-संस्थान के प्रतिकार की शक्ति निहित होती है। लेकिन दिलचस्प बात है कि अक्सर कला की दुनिया के भी अपने पर्याप्त निर्मम सत्ता केन्द्र और पायदान बने होते हैं या बन जाते हैं। मसलन, जाहिर नामी चित्रकारों का मुकाबला करती चित्रकारी करने वाले पचासों चित्रकार मौजूद हैं लेकिन अपनी पेन्टिंगें बेचने के लिए उन्हें मिन्नतें और छोटे-छोटे समझौते करने पड़ते हैं जबकि दो-चार खास नाम अपनी घसीट के दम पर मन मांगी कीमत और बाजार की दिशा-दशा निर्धारित करते हैं। यह सच है कि उन परिचित ब्रांडों का अपना संघर्षपूर्ण रास्ता रहा होता है लेकिन यहाँ बात गुणवत्ता के सूत्र संदर्भ और सत्ता सकेन्दण  की है जो रहस्यमय ढंग से अन्तरविरोधों से अंटा होता है। कला की शक्ति और पहचान इस तरह भी क्षरित होती है। हुसेन के जिक्र में सर्वप्रथम माधुरी दीक्षित, करोड़ों का मूल्य और विवादों की परिछाईं प्रमुखता से झांक रही होती है। हिन्दी के एक शिखर आलोचक का जिक्र अब उनकी किसी आलोचना पद्धति या प्रस्तुति के लिए नहीं, पुस्तक विमोचन और बढ़ा-चढ़ाकर नए-नए जुमले ईजाद करने के लिए होता है। एक अन्य का जिक्र उनकी कविता की बनिश्बत पुरस्कार-अनुदान समितियों और विदेश यात्राओं से ज्यादा जुड़ा होता है। हिन्दी साहित्य में यह इतना व्यापक है कि इसके अपवाद भी ढूंढ़ना उत्तरोत्तर मुश्किल हो रहा है। लेकिन वैसे तो सत्ता जैसी भाववाचक संज्ञा का तुलन-तोलन मुश्किल लगता है लेकिन प्रबंधन, तकनीकी और बाजार के इस दौर में ऐसा कुछ गूढ़-निराकार है ही नहीं जिसे मूल्यांकित न किया जा सके।

इस संदर्भ में पिछले दिनों ‘इंडियन एक्सप्रेस’ द्वारा जारी सर्वोच्च शक्तिमानों की सूची बड़ी रोचक और चुनौतिपूर्ण लगी। नरेन्द्र मोदी अव्वल नंबर पर हैं और राहुल गांधी दूसरे पर जबकि सोनिया गांधी से एक पायदान नीचे अरविन्द केजरीवाल चौथे पर हैं। आधुनिकता, स्त्री और अस्मिता गत पहचान की प्रतीक-त्रिमूर्ति बालाएं ‘जया-माया-ममता’ टॉप 10 में शामिल हैं। नियम कानून और तर्कों को ताक पर रखकर कामयाब दिखते ठाकरे बन्धु और सलमान खान भी इसमें शामिल हैं हालांकि हैं वे काफी नीचे। मोहन भागवत, शरद पवार, अमित शाह, मुलायम सिंह यादव, जगन रेड्डी, लालू प्रसाद यादव, अहमद पटेल और सुखवीर सिंह बादल भी वर्ष 2014 में हमारे शक्तिमान ठहरायें गये हैं जिस पर उनके चाहने वाले इतरा सकते हैं। यूं इस सूची में हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री भी शामिल हैं लेकिन वे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से बहुत पीछे हैं तथा टॉप 50 में भी नहीं हैं। सचिन तेंदुलकर का धोनी और विराट कोहली से पीछे होने बतलाता है कि यदि यह सूची तीन महीने पहले बनाई गयी होती तो इसमें कितना कुछ उलट फेर हो सकता था। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को काफी सत्ता वरीयता हासिल बताई गई है जबकि ‘ये भी दौड़े’ की तर्ज़ पर बाबा रामदेव, हरीश सालवे और योगेन्द्र यादव ने पिछले दरवाजे से एंट्री मारी लगती है। अलबत्ता, किसी भी भारतीय भाषा का कोई लेखक या कवि इसमें दर्ज नहीं है।

इस दिलचस्प सूची का विवेचन-विश्लेषण कई तरह और स्तरों पर किया जा सकता है सरसरी तौर पर देखें तो लगता है कि मीडिया द्वारा रेखांकित हमारे सामाजिक दायरे में लगातार बनी उपस्थिति सत्ता की समानार्थी होती है। अस्तित्व की तरह उसके ‘होने’ की वजह महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसका कोई नीतिगत नियामक या स्पर्शगोचर आधार नहीं होता है। मसलन इधर डावांडोल रहती अर्थव्यवस्था के बारे में कारण-अकारण रघुराम राजन को अख़बारों और चैनलों को समझाना होता है अतः वे शक्तिमान हो गए। यही बात योगेन्द्र यादव, नारायण मूर्ति और प्रकाश करात पर लागू हो जाएगी। दूसरी अहम बात जो दिखती है वह यह है कि आर्थिक कामयाबी, खासकर जब तक वह व्यवस्था के स्तर की न हो, सत्तामुख नहीं मानी जाती है। अंबानी बंधुओं के साथ टाटा -बिड़ला भी इसमें शामिल जरूर हैं लेकिन गौतम अडानी और सुनील मित्तल का भागते भूत के लंगोट की तरह छोर पकड़कर इसमें सवारी करना अर्थ की सत्ता-सीमा की तरफ स्पष्ट इशारा है। सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिन्धिया और सी.रंगराजन जैसे मासूमों का इस सूची में शामिल होना इसे संदिग्ध सा बनाता है। या हो सकता है इसमें आने वाले वक्त की आहटें छुपी हों! लेकिन आनन्द बाजार पत्रिका के अवीक सरकार, हिन्दूस्तान टाइम्स ग्रुप की शोभना भारतीय और टाइम्स ग्रुप के समीर-विनीत जैन का इसमें शामिल होना प्रिंट मीडिया की शक्ति का क्षणिक अहसास भी छोड़ जाता है।

पहली नजर में किसी लेखक कवि का इसमें न होना मायूस कर सकता है विशेषकर ऐसी स्थिति में जब शोहरत और सामाजिक उपस्थिति के लिए वे इतना कुछ बोझा उठाने को तत्पर दिखते हैं। लेकिन इस सूची में उनका न होना बाजार के मद्देनजर आहलादकारी न सही, लेखकी के मूल सरोकारों के लिए तो आश्वस्तकारी ही है।

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Oma sharma, born 1963, is a noted Hindi writer. He has published eight books that include three collections of short stories, namely ‘ Bhavishyadrista’(भविष्यदृष्टा ), ‘Karobaar’(कारोबार) and Dushman Memna(दुश्मन मेमना). Besides, he is widely known in India for re-igniting the interest of all and sundry in the works of noted Austrian legend Stefan Zweig. He has translated the autobiography of Stefan Zweig `The world of yesterday` in Hindi titled ‘Vo Gujra Zamaana’(वो गुजरा जमाना ) as also selected stories of the master in his स्टीफन स्वाइग की कालजयी कहानियाँ(Classic stories of Stefan Zweig) . Adab Se Muthbhed, (अदब से मुठभेड़) his book by way of literary encounters with Legends like Rajendra yadav, Mannoo Bhandari, Priyamvad, Shiv murti and M F Husain has been hugely appreciated for its critical probing.

He has published his travel diaries titled ‘Antaryatrayen :Via Vienna’( अन्तरयात्राएं: वाया वियना ) which records a long, never before attempted kind of essay about Stefan Zweig, Vienna and the cultural aspect of Austria. He is recipient of the prestigious Vijay Verma Katha Sammaan (2006), Spandan Award(2012) and Ramakant Smriti Award(2012) for his short stories.

संपर्क: A-1205, Hubtown Sunstone, Opp MIG cricket club, Bandra east. Mumbai 400051
ईमेल: omasharma40[at]gmail[dot]com

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