वाजपेयी सरकार के गिरने और वायवीय-वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए की गई उठापटक की सुर्खियों के बीच छपे एक निरीह समाचार ने यकायक ही मेरा ध्यान खींच लिया । यह हस्बेमामूल समाचार था कि एक युगल ने उन्तीस घंटे तक लगातार चुंबन की अवस्था में रहने का विश्व कीर्तिमान बनाया। इसे बाकायदा गिनीज बुक में दर्ज किया जाएगा।
चुंबन जो मनुष्य की अंतर्तम संवेदनाओं का बाहृय और कोमल प्रतीक है, उसे दो मनचले बाजार में भुना रहे थे। संभवतः कैमरे और गिनीज पर्यवेक्षकों की चौकन्नी निगाहों तले। आगे यह भी गौरतलब था कि उन्तीस घंटे लगातार चुंबित रहने के कारण उनकी शारीरिक स्थिति इतनी पतली हो गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। इस तरह के कीर्तिमान का क्या प्रयोजन हो सकता है? क्या चुंबन दो व्यक्तियों के मध्य स्थापित संवेदनात्मक संबंध के इजहार मात्र से अधिक कुछ होता है? क्या चुंबन की दीर्घता को प्रेम के समतुल्य माना जा सकता है?
जाहिर है उन्तीस घंटे तक खड़े-खड़े या खड़े-बैठे-लेटे रहकर एक-दूसरे के होठों को बिना अलग किए जब वह करिश्मा ‘परफॉर्म’ किया जा रहा होगा तो कुछ आवश्यक कार्यों को नहीं किया गया होगा। खाना-पीना तो मुल्तवी रहा ही होगा, दैनंदिनी की बाकी कारगुजारियां भी। हर बारह घंटे में एक बार ब्रश करने की हिदायत देने वाली टूथपेस्ट कंपनियां अपने उत्पाद की खपत की गिरावट के प्रति चिंतित हो रही होंगी। कहीं मुंह का जायका दुरुस्त रखने वाली किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने अपने किसी प्रतिद्वंद्वी को मात देने के लिए उस उपलब्धि को प्रयोजित तो नहीं किया था?
एक सवाल यह भी है कि जब हम किसी कीर्तिमान को बनाने या बिगाड़ने-सुधारने की बात करते हैं तो उसके पीछे मंशा क्या होती है? कीर्तिमानों को बनाने-संवारने के पीछे मानव समाज द्वारा नित नई उत्कृष्टताओं को छूने का मंतव्य निहित नहीं होता है क्या? सचिन तेंदुलकर पच्चीस वर्ष की उम्र में ही क्रिकेट के कितने ही कीर्तिमानों के बादशाह हैं तो क्या यह इसीलिए स्पृहणीय नहीं है कि घोर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के वातावरण में यह एक नौजवान की अदम्य जिजीविषा, साहस और एकाग्रता का द्योतक है और इन्हें बनाने में उसे करोड़ों लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव ही नहीं, अनेक विषम मानसिक और शारीरिक परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। क्या यह भारत ही नहीं पूरे विश्व के क्रिकेट प्रेमियों को सुखी या रोमांचित नहीं करता है?
पूछा जाना चाहिए कि लगातार चुंबित रहने के कीर्तिमान से आखिर कोई किस प्रकार प्रेरित हो सकता है? इसमें ‘बड़े कदम’ होने जैसी क्या बात है। क्या किसी भी संख्या के पार जाना कीर्तिमान का हिस्सा हो जाना चाहिए? कल कोई आदमी बिना पलक झपकाए (या सोए) टीवी देखने का कीर्तिमान बनाए तो इसमें करतब जैसा क्या है? संभवतः महान गुगली गेंदबाज भगवत चंद्रशेखर के सिर पर सबसे ज्यादा ‘जीरो’ रन बनाने का कीर्तिमान है। इस कीर्तिमान को मैं इसी रूप में देखता हूं कि एक हाथ पोलियोग्रस्त होने के बावजूद चंद्रशेखर ने अपनी चमत्कारी गेंदबाजी के सहारे एक लंबा क्रिकेट कॅरियर बनाया। चूंकि कीर्तिमान की दुनिया सिर्फ संख्या दर्ज करती है अतः अकसर बेमतलब निष्कर्ष देने लगती है। जैसे सबसे ज्यादा बार अविजित (नॉट आउट) रहने (उन्तालिस) का कीर्तिमान भी उन्हीं हो हासिल है। तो क्या वे बहुत नालायक और उत्कृष्ट बल्लेबाज एक साथ है?
इसी बाईस अप्रैल के इंडियन एक्सप्रेस में एक और करतब गिनीज बुक में दर्ज करवाए जाने की सूचना है। द्वारिका निवासी कांजीभाई चौहान ने पूरे बाईस प्रयासों के बाद दसवीं जमात पास कर ली है। और वह भी अपनी सरकारी सेवा निवृत्ति से चार साल पहले यानी छप्पन की उम्र में। यहां भारतीय स्कूल पद्धति की उदारता-प्रगतिशीलता गौण है जिसमें बाइज्जत ‘पास’ होने के लिए बहुत मेहनतकश या होशियार होना आवश्यक नहीं होता है। चतुर्थ श्रेणी के एक कर्मचारी की रिटायरमेंट से पहले कुछ अहर्ता हासिल करने की जिद समझी जा सकती है ताकि बचा हुआ बुढ़ापा ठीक से कट सके। कांजीभाई ने नकल के सहारे नहीं, अपनी योग्यताओं के बल पर ही यह परीक्षा पास की है अन्यथा वे भी यह कीर्तिमान बनाने का मौका जाया कर गए होते। अपने नाती-पोतों की उम्र के बच्चों के साथ परीक्षा देने में जाहिर है कांजीभाई को कम आत्मसंघर्ष नहीं करना पड़ा होगा। वह भी इतनी थोक असफलताओं के मध्य। लेकिन गिनीज बुक को क्या इससे कोई सरोकार है? होंगे कांजीभाई घोर जीवंत शख्स। गिनीज को परवाह है तो उनकी इक्कीस असफलताओं की। बाईसवें प्रयास की सफलता को तो मोहरा बनाया जा रहा है।
भूमंडलीकरण दी दनादन चलती आंधी हमें उपभोक्तावाद की ऐसी-ऐसी सरहदों की सैर करा रही है कि उस नजारे को देखकर सिर्फ भौंचक और अवसन्न ही रहा जा सकता है। ‘वो’ हमें कभी इक्कीसवीं बार फेल होने पर शाबाशी देते हैं तो कभी तीन मीटर लंबी मूंछें बढ़ाने पर। और हम हैं कि फूलकर कुप्पा हो उठते हैं। हम नहीं कह पाते कि रखो तुम उन्तीस घंटे के चुंबन के कीर्तिमान को अपनी नाक पर। हम इसके बिना ही भले।
लेकिन लगता है मैं कहीं गलत सोचता हूं। 27 अप्रैल को खबर थी कि जामा मस्जिद के पास एक नाई सबसे ज्याद देर तक बाल काटने के गिनीज बुक के कीर्तिमान को ध्वस्त करने पर तुला हुआ है!
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