
प्रिय भाई रघुनन्दनजी;
कुछ खबरें अविश्वसनीय ढ़ग से स्तब्ध करती हैं… जैसा गत जुलाई के ‘प्रशांत ज्योति’ के रविवारीय परिशिष्ट में छपी उस खबर ने किया जिसमें आपकी वह जग-जाहिर पासपोर्ट आकार वाली फोटो टंगी थी… ‘स्मृतियों में पिता’ कहानी के अन्त की तरह खुद को चौखटे में समेटे हुए…। पहले मैं सन्न हुआ… कि ऐसा कैसे [...]